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गुरु-गुण- स्मरण - सूत्र
(२) भाषा समिति - भाषा का अर्थ बोलना है, अत सत्य, हितकारी, परिमित तथा सन्देह रहित, मृदु वचन बोलना भाषा समिति है ।
(३) एषरणा समिति - एषणा का अर्थ खोज करना होता है । प्रत जीवन-यात्रा के लिए आवश्यक ग्राहारादि साधनो को जुटाने की सावधानता पूर्वक निरवद्य प्रवृत्ति करना, एषरणा समिति है ।
(४) श्रदान- निक्षेप-समिति — प्रादान का अर्थ ग्रहण करना और निक्ष ेप का अर्थ रखना होता है । अत अपने पात्र पुस्तक आदि वस्तु को भली-भाँति देख-भाल कर, प्रमार्जन करके लेना अथवा रखना, आदान-निक्षेप - समिति है ।
(५) उत्सर्ग-समिति — उत्सर्ग का अर्थ त्याग होता है । प्रत वर्तमान मे जीव-जन्तु न हो अथवा भविष्य मे जीवो को पीडा पहुँचने की सभावना न हो, ऐसे एकान्त प्रदेश मे अच्छी तरह देख कर तथा प्रमाजनकर के ही अनुपयोगी वस्तुओ को डालना, उत्सर्ग समिति है । उक्त समिति को परिष्ठा पनिका समिति भी कहते हैं । परिष्ठापन का अर्थ भी परठना, त्यागना ही है ।
तीन गुप्ति
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गुप्ति का अर्थ गुप्= रक्षा करना, रोकना है । अर्थात् सासारिक वासनाओ से आत्मा की रक्षा करना, विवेकपूर्वक मन, वचन और शरीर-रूप योगत्रय की प्रवृत्तियो का प्रशत या सर्वंत निग्रह करना गुप्ति है ।
(१) मनोगुप्ति -- कुशल यानी पाप-पूर्ण सकल्पो का निरोध करना । मन का गोपन करना, मन की चंचलता को रोकना, बुरे विचारो को मन मे न आने देना ।
(२) वचन - गुप्ति – वचन का निरोध करना, निरर्थक वार्तालाप न करना, मौन रहना | बोलने के प्रत्येक प्रसग पर, वचन पर यथावश्यक नियन्त्रण रखना, वचन - गुप्ति है ।
(३) काय - गुप्ति - बिना प्रयोजन शारीरिक क्रिया नही करना । किसी भी चीज के लेने, रखने, किंवा बैठने आदि क्रियाओ मे सयम करना, स्थिरता का अभ्यास करना, काय - गुप्ति है ।