Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 306
________________ २८६ सामायिक-सूत्र पाठ लिखा है, इसमे सामायिक मे लगने वाले अतिचारो की आलोचना की गई है । व्रत मे मलिनता पैदा करने वाले दोषो मे अतिचार ही मुख्य है, अत अतिचार की आलोचना के साथ-साथ अतिक्रम और व्यतिक्रम की आलोचना स्वय हो जाती है । पाँच अतिचार __ सामायिक-व्रत के पाँच अतिचार है-मनोदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, कायदुष्प्रणिधान, सामायिक-स्मृति-भ्र श, और सामायिकअनवस्थित । सक्षेप मे अतिचारो की व्याख्या इस प्रकार है - १-सामायिक के भावो से बाहर मन की प्रवृत्ति होना, मन को सासारिक-प्रपचो मे दौडाना, और सासारिक कार्य के लिए इधरउधर के सकल्प-विकल्प करना, मनो-दुष्प्रणिधान है। २-सामायिक के समय विवेक-रहित कट, निष्ठुर एव अश्लील वचन बोलना, निरर्थक प्रलाप करना, कपाय बढाने वाले सावध वचन कहना, वचन-दुष्प्रणिधान है। . ३-सामायिक मे शारीरिक चपलता दिखाना, शरीर से कुचेष्टा करना, विना कारण शरीर को इधर-उधर फैलाना, असावधानी से विना देखे-भाले चलना, काय-दुष्प्ररिंगधान है। ४-मैंने सामायिक की है अथवा कितनी सामायिक ग्रहण की है, इस बात को ही भूल जाना, अथवा सामायिक ग्रहण करना ही भूल वैठना, सामायिक-स्मृति-भ्र श है । मूल-पाठ मे पाए 'सई' शब्द का सदा अर्थ भी होता है । अत इस दिशा मे प्रस्तुत अतिचार का रूप होगा, सामायिक सदाकाल-निरन्तर न करना। सामायिक की साधना नित्य-प्रति चालू रहनी चाहिए। कभी करना और कभी न करना, यह निरादर है। ५-सामायिक से ऊबना, सामायिक का समय पूरा हुआ या नही-इस बात का वार-वार विचार लाना, अथवा सामायिक का समय पूर्ण होने से पहले ही सामायिक समाप्त कर लेना, सामायिक का अनवस्थित दोप है । यदि सामायिक का समय पूर्ण होने से पहिले, जान वूझकर सामायिक समाप्त की जाती है, तब तो अनाचार है, परन्तु 'सामायिक का समय पूर्ण हो गया होगा' ऐसा विचार कर समय

Loading...

Page Navigation
1 ... 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343