Book Title: Saman Diksha Ek Parichay Author(s): Sanmatishree Samni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 13
________________ १२ समण दीक्षा : एक परिचय अनिश्चिन्तता का अनुभव कर रहे थे। उन्हें इन बातों की चिन्ता थी-हमारी बेटियों का भविष्य क्या होगा? इनका जिम्मेदार कौन होगा? समाज की दृष्टि में इनकी क्या अवधारणा होगी? परिवार के साथ क्या संबंध रहेंगे? ये किनके अनुशासन में रहेंगी? इस तरह मकड़ी की भांति स्वयं जाल बुनते और स्वयं ही उसमें फंस जाते। उनकी यह चिन्ता निराधार नहीं थी। संस्था के अधिकारी भी इन प्रश्नों से अछूते नहीं थे। ___लाखों लोगों में बढ़ती हुई जिज्ञासाएं, उत्कण्ठाएं समाहित होना चाहती थीं। पर नये तीर्थ के निर्माता मौन थे। उनका मौन उत्कण्ठाओं को और अधिक बढ़ा रहा था। पूरा वातावरण जैसे असमाहित हो रहा था। समाहित थीं केवल वे बहनें, जिन्हें इस नए पंथ पर प्रस्थित होना था क्योंकि सघन आस्था का दीप. और समर्पण का अनमोल रत्न उनके पास था। समाहित थे अभिभावक वर्ग, जिन्हें समुचित और संक्षिप्त जानकारी देकर आश्वस्त कर दिया गया था और समाहित था साधु-साध्वी परिवार जिनकी जिज्ञासाओं को अनेक गोष्ठियों के माध्यम से विराम दे दिया गया और उन्हें विलक्षण दीक्षा का स्वरूप समझाया गया। इस महायज्ञ में अपनी प्रथम आहुति देने के लिए छह मुमुक्षु बहिनें तैयार हुईं-मुमुक्षु सरिता (लाडनूं), मुमुक्ष सविता (लाडनूं), मुमुक्षु महिमा (भीनासर), मुमुक्षु कुसुम (इन्दौर), मुमुक्षु सरला (मोमासर) तथा मुमुक्षु विभावना (लाडनूं)। कार्तिक शुक्ला द्वितीया का चिरप्रतीक्षित दिन। पूज्य गुरुदेव का सड़सठवें वर्ष में प्रवेश। छियासठ वर्ष की पूर्णाहूति पर छह दीक्षा का विलक्षण योग। चारों ओर प्रफुल्लित एवं प्रमुदित वातावरण। सूर्य सोया हुआ था, पर जनता जाग रही थी। लाडनूं शहर की गलियां, सड़के, घर सब उमड़ी जनमेदिनी से आपूरित थे। जैन विश्व भारती का प्रांगण जन-संकुल था। एकम की रात जैसे जागरण की रात थी। कतारों में खड़ी बसें, मोटरें किसी अन्तर्राज्यीय बस अड्डे की सूचना दे रही थीं। जयघोषों से वातावरण गुंजित हो रहा था। विलक्षण दीक्षा से पूर्व का वातावरण भी इसकी विलक्षणता की सूचना दे रहा था। सूर्य का रथ गगन पथ पर प्रस्थित होने के साथ ही हजारों लोग सुधर्मा सभा में एकत्रित होने लगे। पूरा वातावरण दीक्षामय था। लगभग पचास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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