Book Title: Saman Diksha Ek Parichay Author(s): Sanmatishree Samni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 53
________________ ५२ समण दीक्षा : एक परिचय सत्यव्रत के अतिचार * क्रोध, लोभ, भय या हास्यवश असत्य बोलने का विकल्प आया हो। * यथार्थ को छिपाने का प्रयत्न किया हो। * कथनी और करनी में समानता न रखी हो। तस्स अचौर्यव्रत के अतिचार * आचार और व्यवहार में प्रामाणिकता का अतिक्रमण किया हो। * बिना अनुमति दूसरों की वस्तु का उपयोग किया हो। * मर्यादा, व्यवस्था, अनुशासन का अतिक्रमण किया हो। तस्स. ब्रह्मचर्यव्रत के अतिचार * ब्रह्मचर्य के उपायों आहर-संयम, इन्द्रिय-संयम, आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि का अभ्यास न किया हो। * वासना को उत्तेजित करने वाली कथा, साहित्य, चित्र, संगीत आदि में रस लिया हो। + ब्रह्मचर्य की निरर्थकता या अनावश्यकता का विकल्प आया हो। तस्स" अपरिग्रह व्रत के अतिचार * बहुमूल्य व आकर्षक उपकरण लेने का भाव आया हो। * शारीरिक विभूषा का भाव आया हो अथवा विभूषा की हो। * इन्द्रिय विषयों के प्रति मूर्छा का भाव आया हो। तस्स" मन-अनुशासन के अतिचार * मन को स्थिर करने का अभ्यास न किया हो। * भावक्रिया का अभ्यास न किया हो। • प्रिय-अप्रिय घटना के प्रति प्रतिक्रिया की हो। * अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व आदि अनुप्रेक्षा का अभ्यास न किया हो। तस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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