Book Title: Saman Diksha Ek Parichay
Author(s): Sanmatishree Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 50
________________ समण दीक्षा : एक परिचय ४६ -प्रतिक्रमण प्रारम्भमत्थएण वंदामि प्रथम 'सामायिक' आवश्यक की आज्ञा। -आवस्सई-सुत्तंआवस्सई इच्छाकारेण संदिसह भयवं देवसियं' पडिक्कमणं ठाएमि देवसिय-णाण-दंसण-चरित्त-विसोहणटुं करेमि आवस्सयं । (नमुक्कार-सुत्तं का पाठ पढ़ें) (मंगलसुत्तं का पाठ कहें) करेमि भंते! सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामिउवसंपज्जामि णं चउव्विहं समण-धम्म-खंतिं, मद्दवं, अज्जवं, लाघवं । वज्जयामि णं चउब्विहं अज्झत्थ-दोसं-कोहं, माणं, मायं, लोहं । उवसंपज्जामि णं पंचविहं समण-वेरमणं-पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावायाओ वेरमणं, अदिन्नादाणाओ वेरमणं, मेहुणाओ वेरमणं, परिग्गहाओ वेरमणं। उवसंपज्जामि णं तिविहं समण-अणुसासणं-मण-अणुसासणं, वय-अणु सासणं, काय-अणुसासणं। उवसंपज्जामि णं समण-सीलं-सांतं सहवासं। वज्जयामि णं चउब्विहं पावं-कलहं, अब्भक्खाणं, पेसुण्णं, परपरिवादं । उवसंपज्जामि णं पंचविहं समण-विवेगं-गमण-विवेगं, भासा-विवेगं, भोयण-विवेगं, उवगरण-विवेगं, उस्सग्ग-विवेगं। उवसंपज्जामि णं चउव्विहं समण-साहणं-सज्झायं, झाणं, अणुप्पेहं, ठाणं। . उवसंपज्जामि णं सुय-सामाइयं काले विणये बहुमाणे, उवहाणे तहा अणिण्हवणे। वंजण-अत्थ-तदुभये, अट्ठविहो णाणमायारो॥ उवसंपज्जामि णं दंसण-सामाइयं १. रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 'देवसिय' शब्द के स्थान पर राइय, देवसिय, पक्खिय, देवसियचउमासिय-पक्खिय, देवसियसंवच्छरिय ऐसा कहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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