Book Title: Saman Diksha Ek Parichay Author(s): Sanmatishree Samni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 29
________________ २८ समण दीक्षा : एक परिचय विविध प्रयोग समणश्रेणी में साधना के लिए दो भूमिकाएं हैं-सामूहिक साधना और व्यक्तिगत साधना। सामूहिक साधना साधना के वे प्रयोग जो सब साथ मिलकर करते हैं, वह सामूहिक साधना है। समणश्रेणी में ध्यान, जप, स्वाध्याय आदि कुछ ऐसे अनुष्ठान हैं, जिन्हें सामूहिक किया जाता है। इन अनुष्ठानों की समय-सीमा निर्धारित होती है। अष्टमी, चतुर्दशी तथा पक्खी के दिन 'कायोत्सर्ग प्रतिमा' की जाती है। यह प्रतिमा ध्यान का एक विशेष प्रयोग है। इसके माध्यम से अपने स्वरूप को जानने के लिए विजातीय तत्त्वों का विवेक किया जाता है। क्रोध आदि चार कषाय, भय, शोक, जुगुप्सा (घृणा) मिथ्यात्व, काम (विषय-वासना) आदि विजातीय तत्त्व हैं। ये निरन्तर आत्मा को मलिन करते रहते हैं। कायोत्सर्ग प्रतिमा में स्थित होकर समण/समणी सबसे पहले इन विभावों को आत्मा से पृथक् देखते हैं। विगत दिनों में यदि इनका उदयभाव व्यवहार से प्रकट हुआ हो तो उसका प्रतिक्रमण करते हैं, वर्तमान में इनका संवर करते हैं तथा भविष्य में ऐसा न करने का संकल्प लेते हैं। कायोत्सर्ग प्रतिमा का यह प्रयोग साधक को अध्यात्म की ऊंचाइयों पर ले जाने वाला है, वहीं व्यावहारिक जगत् में शान्त सहवास का वातावरण निर्मित करता है और आन्तरिक वृत्तियों का परिष्कार करता है। इस प्रयोग की कालावधि पैंतालीस मिनट की निर्धारित है। उक्त प्रयोग श्रेणी के सभी सदस्य साथ बैठकर करते हैं। इनके अतिरिक्त कुछेक ऐसे प्रयोग भी हैं, जिन्हें सब साथ मिलकर नहीं करते किन्तु उन्हें करना सबके लिए अनिवार्य है। आसन-प्राणायाम आदि योग साधना तथा तप के कुछ प्रयोग सबके लिए जरूरी है पर सब साथ में करें यह अनिवार्य नहीं। अष्टमी, चतुर्दशी तथा पक्खी के दिन 'कायोत्सर्ग प्रतिमा' दो बार की जाती है। तप के प्रयोग में सामान्यतया प्रत्येक समण/समणी के लिए एक वर्ष में कम से कम तीस उपवास/पैंतालीस आयंबिल साठ एकासन साठ दिन विगय-वर्जन करना आवश्यक है। व्यक्तिगत साधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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