Book Title: Saman Diksha Ek Parichay Author(s): Sanmatishree Samni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 27
________________ २६ समण दीक्षा : एक परिचय बना सके। सावधिक समण दीक्षा में जिस अवधि तक साधक इस साधना में रहता है पारिवारिक संबंधों, रिश्तों-नातों को उस अवधि तक विराम देना होता है। समण-परिधान, भिक्षाचर्या तथा उसी अनुशासन और आचार का पालन करना होता है, जो यावज्जीवन वालों के लिए निर्धारित की गई है। बैठना, उठना, चलना, बोलना सभी क्रियाएं संयमित हो जाती हैं। निश्चित अवधि पूरी हो जाने के बाद वह गृहस्थ जीवन में भी जा सकता है, यदि वह चाहे तो मुनिधर्म को भी स्वीकार कर सकता है। आज तक इस सावधिक श्रृंखला में बारह भारतीय भाई तथा तीन विदेशी भाई बहिनें (१ भाई २ बहिनें) दीक्षित हो चुके हैं। उनमें से सात साधकों ने मुनिधर्म को अंगीकार किया है। यावज्जीवन दीक्षा जीवन भर के लिए समणधर्म को स्वीकारना यावज्जीवन समण दीक्षा है। उसमें भी दो विकल्प हैं। यदि साधक जीवन भर समण-पर्याय में साधना करना चाहे तो कर सकता है और यदि वह कुछ वर्ष इसमें साधना कर मुनि दीक्षा स्वीकार करना चाहे तो भी कर सकता है। अभी तक इस श्रेणी में यावज्जीवन दीक्षित होने वाले समण/समणी का लक्ष्य मुनिधर्म स्वीकार करना रहा है, किन्तु प्रथम विकल्प के लिए भी इसमें अवकाश है। वर्तमान में इक्आसी समणियां (८१) इस साधना में यावज्जीवन के लिए संकल्पित हैं, जिनका लक्ष्य अग्रिम श्रेणी में प्रवेश करना है। अब तक तीस समणी मुनिभूमिका में प्रवेश कर चुकी हैं। वर्तमान में इस श्रेणी में पांच समण साधना कर रहे हैं उनमें से तीन यावज्जीवन के लिए तथा दो सावधिक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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