Book Title: Saman Diksha Ek Parichay
Author(s): Sanmatishree Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 19
________________ आचार संहिता व्रत आचार कहलाते हैं। व्रतों का समूह या नियमावली आचार-संहिता कहलाती है। किसी भी संगठन, संस्था अथवा सभा की निश्चित आचार संहिता होती है। इसके बिना गति-प्रगति नहीं हो सकती। आचार-संहिता मील का वह पत्थर है, जो लक्ष्य की ओर बढ़ने वालों को मार्ग का संकेत देता रहता है । समणश्रेणी के लिए निर्धारित आचार-संहिता समण-समणी के लिए मील के पत्थर अथवा दिशासूचक यंत्र के समान है। जैनधर्म में साधना का आधार माना गया है-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। साधु हो या गृहस्थ, उनके धार्मिक जीवन की भूमिका ये व्रत ही हैं। अन्य व्रत या नियम इन्हीं के इर्द-गिर्द होते हैं। समणश्रेणी की आचार-संहिता भी इन्हीं व्रतों पर आधारित है १. सामान्यत. जीव-हिंसा से विरत रहना। २. सचित्त भोजन नहीं करना। ३. असत्य वचन नहीं बोलना। ४. अदत्त मकान या वस्तु का ग्रहण नहीं करना। ५. ब्रह्मचर्य का पालन करना। ६. असंग्रह व्रत का पालन करना। किसी भी प्रकार की चल-अचल सम्पत्ति नहीं रखना। रूपये-पैसे नहीं रखना। आभूषण नहीं रखना। ओढ़ने-बिछाने, पहनने के वस्त्र, पात्र आदि निर्धारित सीमा से अधिक नहीं रखना। ७. रात्रि-भोजन नहीं करना। ८ रात्रि में किसी प्रकार का खाद्यपदार्थ पास में नहीं रखना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58