Book Title: Saman Diksha Ek Parichay Author(s): Sanmatishree Samni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 21
________________ अनुशासन मंजिल की ओर कदम बढाते समय मार्ग में बहुत से दुरूह मोड़ आते हैं, जहां साधक की विवेक-चेतना पर आवरण आ जाता है। ऐसी अवस्था में अनुशासन, मर्यादा, नियम, विधि-विधान की सीमाएं उन्हें सही राह का बोध देते हैं। अनुशासन उन्नत जीवन की पहचान है। अनुशासन जहां स्वच्छन्द आचरण पर रोक लगाता है वहां विकास के लिए स्वतंत्रता भी प्रदान करता है। वृक्ष की कलम को रोपते समय उसके चारों ओर सुरक्षा-पाली बांधी जाती है, बाड़ का घेरा लगाया जाता है। समणश्रेणी का यह नवजात पौधा अनुशासन की बाड़ के बीच अपने आत्मानुशासन को पुष्ट करता रहे-इस दृष्टि से इसके लिए कुछ अनुशासन की लकीरे खींची गईं। समणदीक्षा के प्रसंग के साथ एक प्रश्न उठा-इन पर अनुशासन किसका रहेगा? किसी गृहस्थ का अनुशासन इन पर हो, यह उचित नहीं। इस प्रश्न के समाधान में जो कुछ निर्धारित किया गया वह इस श्रेणी के लिए अनुशासन का पाठ बन गया १.समणश्रेणी पर आध्यात्मिक अनुशासन आचार्य का रहेगा। २. समण साधुओं के और समणी साध्वियों के संरक्षण में साधना करेगी। ३. समणी कहीं भी अकेली नहीं जाएगी। ४. समण/समणी के अपने-अपने वर्ग में कोई एक परिवर्तित रूप से नियोजक या नियोजिका नियुक्त होता रहेगा/होती रहेगी। ५. समण/समणी अपने नियोजक नियोजिका को सूचित किये बिना निवास स्थान से बाहर नहीं जायेगा/जाएगी। ६. समण किसी अकेली स्त्री के साथ और समणी किसी अकेले पुरुष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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