Book Title: Saman Diksha Ek Parichay Author(s): Sanmatishree Samni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 16
________________ समण दीक्षा : एक परिचय १५ रूप दिया गया वह है-सफेद साड़ी पर सफेद कवच, कवच पर गुलाबी रंग के वलय में कसीदा गया 'अर्हम्' तथा मुखवस्त्रिका के स्थान पर हाथ में सफेद मुख वस्त्र (रूमाल)। समणश्रेणी का यह परिधान जहां उपयोगी सिद्ध हुआ वहां आकर्षण का केन्द्र भी। इस देश के निर्धारण में महाश्रमणी कनक प्रभा तथा उनकी सहवर्तिनी साध्वी वृन्द की भूमिका मुख्य रही है। सामायिक सूत्र ____ सामायिक सूत्र दीक्षित जीवन का आधार सूत्र है। समण दीक्षा के लिए सामायिक सूत्र का नवीन ढंग से निर्माण किया गया। उसकी भाषा प्राकृत है तथा शब्दावली मूल सामायिक सूत्र से भिन्न है। इसमें पच्चरवामि के स्थान पर उवसंपज्जामि (स्वीकार करता हूं) तथा वज्जयामि (छोड़ता हूं) शब्दों का बार-बार प्रयोग हुआ है। इसमें आगार सहित सावद्ययोग का त्याग तथा आन्तरिक वृत्ति-शोधन पर अधिक बल दिया गया है। इस सूत्र का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है भन्ते ! मैं सावद्योग का प्रत्याख्यान करता हूं/करती हूं। __ मैं चतुर्विध समणधर्म-क्षांति, मार्दव, आर्जव और लाघवकी उपसम्पदा स्वीकार करता हूं/करती हूं। _ मैं चतुर्विध आन्तरिक दोषों-क्रोध, मान, माया और लोभ का वर्जन करता हूं/करती हूं। मैं पंचविध समणविरमण-प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान मैथुन और परिग्रह का वर्जन करता हूं/करती हूं। __मैं त्रिविध समण-अनुशासन-मन-अनुशासन, वचन-अनुशासन और काय-अनुशासन-की उपसम्पदा स्वीकार करता हूं/करती हूं। ___ मैं समणशील-शान्त सहावास की उपसम्पदा स्वीकार करता हूं/करती हूं। __ मैं चतुर्विध पाप-कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य और परपरिवाद का वर्जन करता हूं/करती हूं। ___ मैं पंचविध समण विवेक-गमन विवेक, भाषा विवेक, भोजन विवेक उपकरण विवेक और उत्सर्ग विवेक की उपसम्पदा स्वीकार करता हूं/करती हूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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