Book Title: Samadhi Tantra
Author(s): Jaykumar Jalaj, Manish Modi
Publisher: Hindi Granth Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ आचार्य पूज्यपाद कृत समाधितन्त्र येनात्माऽबुद्ध्यतात्मैव परत्वेनैव चापरम् । अक्षयानन्तबोधाय तस्मै सिद्धात्मने नमः ।।१।। जो आत्मा को आत्म रूप में और आत्मा से इतर अथवा पर को इतर अथवा पर रूप में जानते हैं उन अनन्त ज्ञान स्वरूप और अविनाशी सिद्धात्मा को मैं पूज्यपाद नमन करता हूँ। जयन्ति यस्यावदताऽपि भारती विभूतयस्तीर्थकृतोऽप्यनीहितुः । शिवाय धात्रे सुगताय विष्णवे जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः ॥२॥ न बोलते हुए भी जिनकी वाणी और कोई इच्छा न होते हुए भी जिनकी अन्य विभूतियाँ विजेता होती हैं उन ब्रह्मा, सुगति प्राप्त विष्णु, शिव और जिन रूप सशरीर शुद्धात्मा अरिहन्त को भी मैं पूज्यपाद नमन करता हूँ। श्रुतेन लिङ्गेन यथात्मशक्ति समाहितान्त:करणेन सम्यक् । समीच्य कैवल्यसुखस्पृहाणां विविक्तमात्मानमथाभिधास्ये ॥३॥ मैं पूज्यपाद आत्मा के शुद्ध स्वरूप को शास्त्र, अनुमान और एकाग्र मन से अनुभव करके अपनी शक्ति के अनुसार उन व्यक्तियों के लिए इस ग्रन्थ की रचना कर रहा हूँ जिन्हें निर्मल और अतीन्द्रिय सुख की आकांक्षा है। बहिरन्त: परश्चेति त्रिधात्मा सर्वदेहिषु । उपेयात्तत्र परमं मध्योपायाद् बहिस्त्यजेत् ।।४।। सभी प्राणियों में बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा इस प्रकार आत्मा के तीन प्रकार होते हैं। इनमें अन्तरात्मा द्वारा बहिरात्मा का त्याग करके उपायपूर्वक परमात्मा को अंगीकार किया जाना चाहिए।

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34