Book Title: Sagarmal Jain Abhinandan Granth Author(s): Shreeprakash Pandey Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने जैन विद्या से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण लेखों के प्रकाशन हेतु 'जैन विद्या के आयाम' के नाम से विविध खण्डों के प्रकाशन की योजना बनाई थी। इस क्रम में हम अभी तक पांच खण्डों का प्रकाशन कर चुके हैं। प्रथम खण्ड संस्थान के संस्थापक लाला हरजसराय जी की स्मृति में निकाला गया। इसी प्रकार दूसरा खण्ड संस्थान के मार्गदर्शक पं० बेचरदास जी दोशी की स्मृति में एवं तृतीय खण्ड पद्मभूषण पण्डित दलसुखभाई मालवणिया के अभिनन्दन ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित किए गए। इसी क्रम में आगे पार्श्वनाथ विद्यापीठ के स्वर्णजयन्ती चतुर्थखण्ड का और श्वेताम्बर स्था. जैन सभा, कलकत्ता के हीरक जयन्ती के अवसर पर पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सहयोग से आयोजित संगोष्ठी से सम्बन्धित पंचम खण्ड का प्रकाशन हुआ। ये सभी खण्ड जैन विद्या के विविध पक्षों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण लेखों के अनुपम संग्रह हैं। इसी क्रम को बढ़ाते हुए जैन विद्या की विविध आयाम नामक इस षष्ठ खण्ड में डॉ० सागरमल जैन के जैन विद्या से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण लेखों के संग्रह का प्रकाशन 'डॉ० सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रंथ' के रूप में कर रहे हैं। वैसे आपके कुछ लेखों का संग्रह पूर्व में सागर जैन-विद्या भारती के नाम से तीन खण्डों में प्रकाशित हुआ था, फिर भी उनके विपुल लेखन को देखते हुए यही आवश्यक समझा गया कि उनके सभी महत्त्वपूर्ण लेख एक जगह संगृहीत हो जाय। यद्यपि यह संग्रह प्रकाशित हो इस सन्दर्भ में तो डॉ० साहब की अभिरुचि थी लेकिन उसे वे एक अभिनन्दन ग्रंथ का रूप नहीं देना चाहते थे। उनका अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो इसको लेकर साध्वी श्री प्रमोद कुमारी जी ने बहुत पहले ही योजना रखी थी किन्तु डॉ० साहब के संस्थान के निदेशक रहते हुए यह हमारे लिए सम्भव नहीं हो सका। अत: उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात् हमने उनके अभिनन्दन की एक योजना बनाई और जैन विद्या के आयाम का यह छठा खण्ड उनके अभिनन्दन ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। हम उक्त अभिनन्दन ग्रंथ में उन्हीं के लेखों को संगृहीत करके उन्हीं को समर्पित कर रहे हैं। यह तो ठीक वैसा ही है 'त्वदीयं वस्तु गोविन्दं तुभ्यमेव समर्पये'। इसमें जैन आगम; दर्शन नीति, धर्म; साधना; समाज-संस्कृति, इतिहास परम्परा आदि विविध आयामों पर उनके द्वारा समय-समय पर लिखे गए लेखों का संकलन है। डॉ० साहब की विद्वत्ता से सम्पूर्ण जैन जगत् सुपरिचित है, जिनकी कलम से निकले हए लेख जैन विद्या के अध्येताओं, शोध-छात्रों और विद्वानों सभी के लिए समादरणीय बनेंगे। इन लेखों के प्रकाशन के अवसर पर उन सभी पत्र-पत्रिकाओं, अभिनन्दन ग्रंथों के प्रकाशकों आदि के प्रति आभार व्यक्त करना चाहेंगे, जहां से इस सामग्री का संकलन किया गया है। हम उन सभी समीक्षकों के आभारी हैं, जिन्होंने डॉ० साहब की कृतियों का मूल्यांकन कर हमें प्रेषित किया है। इसी प्रकार हम उन सभी लेखकों के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं, जिनके द्वारा हमें संस्मरण, शुभाशंसाएं एवं व्यक्तित्व-मूल्यांकन प्राप्त हुए। इस अभिनन्दन ग्रंथ के प्रकाशन की बेला में हम परामर्श मण्डल एवं सम्पादक मण्डल के सदस्यों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। हम डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय के प्रति अपना विशेष आभार प्रकट करते हैं, इसलिए कि उन्होंने निरन्तर श्रम करके दो माह की अल्पावधि में ही इस ग्रन्थ के प्रकाशन को सम्भव बनाया। - इस गुरुतर कार्य के त्वरित सम्पादन में सहायक रहे सन कम्प्यूटर साफ्टेक,राजेश कम्प्यूटर्स,सरिता कम्प्यूटर्स एवं नया संसार प्रेस के प्रति सुन्दर अक्षर सज्जा के लिए तथा सत्वर मुद्रण के लिए श्री वर्धमान मुद्रणालय, रत्ना प्रिन्टिग प्रेस एवं काबरा आफसेट के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। अन्त में हम उन सभी व्यक्तियों के प्रति अपना सहदय आभार व्यक्त करते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस ग्रन्थ के प्रकाशन में सहयोगी रहे हैं। भवदीय भूपेन्द्रनाथ जैन मंत्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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