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नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन
नियुक्तियाँ वस्तुतः आगमिक परिभाषिक शब्दों एवं आगमिक विषयों के अर्थ को सुनिश्चित करने की एक प्रयत्न हैं । फिर भी नियुक्तियाँ अति संक्षिप्त हैं, इनमें मात्र आगमिक शब्दों एवं विषयों के अर्थ-संकेत ही हैं, जिन्हें भाष्य और टीकाओं के माध्यम से ही सम्यक् प्रकार से समझा जा सकता है। जैन आगमों की व्याख्या के रूप में जिन नियुक्तियों का प्रणयन हुआ, मुख्यतः प्राकृत गाथाओं में हैं। आवश्यकनिर्युक्ति में नियुक्ति शब्द का अर्थ और नियुक्तियों के लिखने का प्रयोजन बताते हुए कहा गया है। " एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, अतः कौन सा अर्थ किस प्रसंग में उपयुक्त है, यह निर्णय करना आवश्यक होता है। भगवान महावीर के उपदेश के आधार पर लिखित आगमिक ग्रन्थों में कौन से शब्द का क्या अर्थ है, इसे स्पष्ट करना ही निर्युक्ति का प्रयोजन है। " दूसरे शब्दों में नियुक्ति जैन परम्परा के पारिभाषिक शब्दों का स्पष्टीकरण है| यहाँ हमें स्मरण रहे कि जैन परम्परा में अनेक शब्द अपने व्युत्पत्तिपरक अर्थ में ग्रहीत न होकर अपने पारिभाषिक अर्थ में ग्रहीत हैं, जैसे अस्तिकायों के प्रसंग में धर्म एवं अधर्म शब्द, कर्म सिद्धान्त के सन्दर्भ में प्रयुक्त कर्म शब्द अथवा स्याद्वाद में प्रयुक्त स्यात् शब्द। आचारांग में 'दंसण' (दर्शन) शब्द का जो अर्थ है, उत्तराध्ययन में उसका वही अर्थ नहीं है । दर्शनावरण में दर्शन शब्द का जो अर्थ होता है वही अर्थ दर्शन मोह के सन्दर्भ में नहीं होता है । अतः आगम ग्रन्थों में शब्द के प्रसंगानुसार अर्थ का निर्धारण करने में नियुक्तियों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
निर्युक्तियों की व्याख्या - शैली का आधार मुख्य रूप से जैन परम्परा में प्रचलित निक्षेप-पद्धति रही है। जैन परम्परा में वाक्य के अर्थ का निश्चय नयों के आधार पर एवं शब्द के अर्थ का निश्चय निक्षेपों के आधार पर होता है। निक्षेप चार हैं नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । इन चार निक्षेपों के आधार पर एक ही शब्द के चार भिन्न अर्थ हो सकते हैं। निक्षेप-पद्धति में शब्द के सम्भावित विविध अर्थों का उल्लेख कर उनमें से अप्रस्तुत अर्थ का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ का ग्रहण किया जाता है। उदाहरण के रूप में आवश्यक - नियुक्ति के प्रारम्भ में अभिनिबोध ज्ञान के चार भेदों के उल्लेख के पश्चात् उनके अर्थों को स्पष्ट करते हुये कहा गया है कि अर्थों (पदार्थों) का ग्रहण अवग्रह है एवं उनके सम्बन्ध में चिन्तन ईहा है। 2 इसी प्रकार नियुक्तियों में किसी एक शब्द के पर्यायवाची अन्य शब्दों का भी संकलन किया गया है, जैसे आभिनिबोधिक शब्द के पर्याय हैं। - ईहा, अपोह, -विमर्श, मार्गणा, गवेषणा, संज्ञा, स्मृति, मति एवं प्रज्ञा । नियुक्तियों की विशेषता यह है कि जहाँ एक ओर वे आगमों के महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दों के अर्थों को स्पष्ट करती हैं, वहीं आगमों के विभिन्न अध्ययनों और उद्देशकों का संक्षिप्त विवरण भी देती हैं। यद्यपि इस प्रकार की प्रवृत्ति सभी निर्युक्तियों में नहीं है, फिर भी उनमें आगमों के पारिभाषिक शब्दों के अर्थ का तथा उनकी विषय-वस्तु का अति संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो जाता है।
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प्रमुखनिर्युक्तियाँ
निम्न है 4
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आवश्यक नियुक्ति में लेखक ने जिन दस नियुक्तियों के लिखने की प्रतिज्ञा की थी, वे
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