Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 1
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्रो. सागरमल जैन
233
- मूलाचार, 515 72..ण वसो अवसो अवसस्स कम्म वावस्सयं ति बोधव्वा जुत्ति त्ति उवाअंति य णिरवयवो होदि णिजुत्ती।।
___ - नियमसार, गाथा 142, लखनऊ, 1931 73. देखें-- कल्पसूत्र, स्थविरावली विभाग, 74. देखें-- मूलाचार षडावश्यक-अधिकार 75. थेरस्स णं अज्ज विन्हुस्स माढरस्सगुत्तस्स अज्जकालए थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते
थेरस्सणं अज्जकालस्स गोयमसगुत्तस्स इमे दुवे थेरा अंतेवासी गोयमसगुत्ते अज्ज संपलिए थेरे अज्जभद्दे, एएसि दुन्हवि गोयमसगुत्ताणं अज्ज बुड्डे थेरे।
- कल्पसूत्र ( मुनिप्यारचन्दजी, रतलाम) स्थविरावली, पृ. 233
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