Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 1
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 307
________________ प्रो. सागरमल जैन 60 पालक + 155 नन्दवंश = 215 बीतने पर मौर्यवंश का शासन प्रारम्भ हुआ। 14. एवं च श्री महावीर मुलेर्वर्षशते, पंच पंचाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः ।। • परिशिष्टपर्व, हेमचन्द्र, सर्ग, 8/339 (जैनधर्म प्रसारक संस्था भावनगर ) 15. ज्ञातव्य है चन्द्रगुप्त मौर्य को वीरनिर्वाण सं. 215 में राज्यासीन मानकर ही वीरनिर्वाण ई. पू. 527 में माना जा सकता है, किन्तु उसे वीरनिर्वाण 155 में राज्यासीन मानने पर वीरनिर्वाण ई. पू. 467 मानना होगा । 16. Jacobi, V. Harman Buddhas und Mahaviras Nirvana und die 17. Charpentier Jarl 18. अनेकान्त, वर्ष 4 किरण 10, शास्त्री ए. शान्तिराज Politische Entwicklung Magadhas Zu Jerier Zeit, 557. Uttaradhyayanasutra, Introduction p. 13-16. भगवान महावीर के निर्वाण सम्वत् की समालोचना 19. Indian Antiguary, Vol. XLVI, 1917, July 1917, Page 151-152, Swati Publications, Delhi, 1985. 20. The Journal of the Royal Asiatic Society, 1917, Vankteshvara, - The Date of Vardhamana, p. 122-130. S.V. -- 21. मुख्तार जुगलकिशोर -- "जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश", श्री वीरशासन 25. Norman, K.R. संघ, कलकत्ता, ई. सन् 1956, पृ. 26-56 22. मुनि कल्याणविजय वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना प्रकाशक क. वि. शास्त्र समिति जालौर, वि. स. 1987 23. Eggermont, P.H.L. "The Year of Mahavira's Decease". 24. Smith, V. A. The Jaina Stupa and other Antiquities of Mathura, -- 266 -- wwwxx -- www.dds Indological Book House, Delhi, 1969, p.14. -- Jain Education International -- -- Buddh. 26. अञ्ञतरो पिखो राजामच्चो राजानं मागधं अजातसत्तुं वेदेहिपुत्तं एतदवोच "अयं, देव, निगण्ठो नाटत्तो सड्घी चेव गणी च गणाचरियो च, आतो, यसस्सी, तित्थकरो, साधुसम्मतो बहुजनस्स, रत्तञ्ञ, चिरपब्बजितो, अर्द्धगतो, वयोअनुप्पत्तो । दीघनिकाय, सामञ्ञफलसुत्तं, 2/1/7 मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैनकाल गणना, पृ. 4-5. Observations on the Dates of the Jina and the 27. देखें 28. देखें -- मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण और जैनकाल गणना, पृ. 1 29. देखें दीघनिकाय, सामञ्ञफलसुत्तं, 2/2/8 30. एवं मे सुतं । एकं समयं भगवा सक्केसु विहरति वेधञ्ञा नाम सक्या तेसं अम्बवने पासादे । तेन खो पन समयेन निगण्ठो नाटपुत्तो पावायं अधुनाकालकतो होति । तस्स कालड्किरियाय भिन्ना निगण्ठा द्वेधिकजाता भण्डनजाता कलहजाता विवादापन्ना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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