Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 1
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्रो. सागरमल जैन
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53. स्वयं चतुर्दशपूर्वित्वेऽपि यच्चतुर्दशपूर्भुपादानं तत् तेषामपि षट्स्थानपतितत्वेन
शेषमहात्म्यस्थापनपरमदुष्टमेव, भाष्यगाथा वा द्वारगाथायादारभ्य लक्ष्यन्त इति प्रेर्यानवकाश एवेति।।
- उत्तराध्ययन टीका, शान्त्याचार्य, गाथा 233 54. एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियनामगोए य। एते तिन्निवि देसा दव्वंमि य पोंडरीयस्स।।
- सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 146 55. ये चादेशाः4, यथा--- आर्यमगुराचार्यस्त्रिविधं शङ्खमिच्छति-- एकभाविक
बद्घायुष्कमभिमुखनामगोत्रं च, आर्यसमुद्रो द्विविधम -- बद्घायुष्कमभिमुखनामगोत्रं च, आर्यसुहस्ती एकम्-- अभिमुखनाम गोत्रमितिः
- बृहत्कल्पसूत्रम, भाष्य भाग 1, गाथा 144 56. वही, षष्ठविभाग, पृ.सं.१५-१७ 57. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1252-1260 58. वही, गाथा- 85 59. जत्थ य जो पण्णवओ कस्सवि साहइ दिसासु य णिमित्तं । जत्तोमुहो य ढाई सा पुव्वा पच्छवो अवरा।।
- आचारांगनियुक्ति, गाथा 51 60. सप्ताश्विवेदसंख्य, शककालमपास्य चैत्रशुक्लादौ । अर्धास्तमिते भानौ, यवनपुरे सौम्यदिवसाये।।
- पंचसिद्धान्तिका उद्धृत बृहत्कल्पसूत्रम्, भाष्य षष्ठविभाग, प्रस्तावना, पृ. 17 61. बृहत्कल्पसूत्रम, षष्ठविभाग, प्रस्तावना, पृ. 18 62. गोविंदो नाम भिक्खू... पच्छा तेण एगिदियजीवसाहणं गोविंदनिज्जुत्ती कया।। एस नाणतेणो।।
- निशीथचूर्णि, भाग 3, उद्देशक 11-सन्मति ज्ञानपीठ,आगरा, पृ. 260 63. (अ) गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारणिंदाणं। णिच्चं खंतिदयाणं पस्वणे दुल्लभिदाणं ।।
- नन्दीसूत्र, गाथा 81 (ब) आर्य स्कंदिल
आर्य हिमवंत
आर्य नागार्जुन
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