Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 1
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्रो. सागरमल जैन
229
- आवश्यकनियुक्ति, गाथा 762-776 (ख) तुंबवणसन्निवेसाओ, निग्गयं पिउसगासमल्लीणं।
छम्मासियं छसु जयं, माऊय समन्नियं वंदे।। जो गुज्झएहिं बालो, निमंतिओ भोयणेण वासंते। णेच्छा विणीयविणओ, तं वइररिसिं णमंसामि।। उज्जेणीए जो जंभगेहिं आणक्खिऊण थुयमहिओ।। अक्खीणमहाणसियं सीहगिरिपसंसियं वंदे।। जस्स अणुण्णाए वायगत्तणे दसपुरम्मि णयरम्म। देवेहिं कया महिमा, पयाणुसारिं णमंसामि।। जो कन्नाइ धणेण य, णिमंतिओ जुव्वणम्मि गिहवइणा। नयरम्मि कुसुमनामे, तं बइररिसिं णमंसामि ।। जणुद्धारआ विज्जा, आगासगमा महारिण्णाओ।
वंदामि अज्जवहरं, अपच्छिमो जो सुयहराणं ।। (ग) अपुहुत्ते अणुओगो, चत्तारि दुवार भासई एगो।
पुहुताणुओगकरणे, ते अत्थ तओ उ वोच्छिन्ना।। देविंदवंदिरहि, महाणुभागेहिं रक्खिअज्जेहिं। जुगमासज्ज विभत्तो, अणुओगो तो कओ चउहा।। माया य रुद्दसोमा, पिया य नामेण सोमदेव त्ति। भाया य फरगुरक्खिय, तोसलिपुत्ता य आयरिआ।। णिज्जवणभद्गुत्ते, वीसं पढणं च तस्स पुव्वगयं ।
पव्वाविओ य भाया, रक्खिअखमणेहिं जणओ य।। 35. जह जह पएसिणी जाणुगम्मि पालित्तओ भमाडेइ। तह तह सीसे वियणा, पणस्सइ मुरुंडरायस्स।।
- पिण्डनियुक्ति, गाथा - 498 36. नइ कण्ह-विन्न दीवे, पंचसया तावसाण र्णिवसंति।
पव्वदिवसेसु कुलवइ, पालेवुत्तार सक्कारे।। जण सावगाण खिसण, समियक्खण माइठाण लेवेण । साक्य पयत्तकरणं, अविणय लोए चलण धोए।। पडिलाभिय वच्चंता, निबुड्ड नइकूलमिलण समियाओ। विम्हिय पंच सया तावसाण पव्वज्ज साहा य।।
__ - पिण्डनियुक्ति, गाथा 503-505 37. (अ) वही, गाथा 505
(ब) नन्दीसूत्र स्थविराक्ली गाथा, 36 (स) मथुरा के अभिलेखों में इस शाखा का उल्लेख ब्रह्मदासिक शाखा के रूप में मिलता
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