Book Title: Sadhu Pratikraman Sutrani Tatha Sadhu Vidhi Prakash
Author(s): Kshamakalyan Upadhyay
Publisher: Govindjibhai Harshi Punshi
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दर्शनाचारे आठ अतिचार ॥ निस्संकिअ निकंखिअ। निम्वितिगिच्छा अमूढदिट्टीअ ॥ उवव्हथिरीकरणे। | वच्छल्लपभावणे अह॥२॥ देवगुरु धर्मतणे विषे निस्संकपणो न कीधो, तथा एकान्तनिश्चय धन्यो नहीं, धर्म संबंधिआ फलतणे विषे निस्संदेह बुद्धिधरी नहीं, साधुसाध्वी तणी निंदा जुगुप्सा कीधी, मिथ्यात्वीतणी पूजामभावना देखी। संघमाहे गुणवंत तणी अनुपबृंहणा अस्थिरीकरण, अवात्सल्य, अप्रीति अभक्ति निपजावी । तथा देवद्रब्य गुरुद्रव्य भक्षित उपेक्षित प्रज्ञापराधे विणास्यो, विणसंतो उवेख्यो, छतीशक्ति सारसं-I भाल न कीधी, ठवणायरिय हाथथकी पाव्यो, पडिलेहवो विसायो, जिनभुवनतणी चोरासी आशातना । गुरु प्रते तेत्रीस आशातना कीधी । दर्शनाचार विषइओ अनेरो जे कोइ अतिचार ॥३॥ । चारित्राचारे आठ अतिचार ॥ पणिहाण जोगजुत्तो। पंचहिं समिइहिं तिहिं गुत्तिहिं । एस चरित्तायारो। अह-IN विहो होइ नायब्वो ॥४॥ इरियासमिति, भासासमिति, एषणासमिति, आदान भंडमत्त निक्षेपणासमिति, पा-- रिट्ठावणियासमिति, मनोगुप्ति वचनगुप्ति कायगुप्ति, ए अष्ट प्रवचन माता रूडीपरेपाली नहीं। साधुतणे धर्मे सदैव।श्रावकतणे धर्मे सामायिक पोसह लीधे, जे कोई खंडन विराधना कीधी होय। चारित्राचार विषइओ अनेरा जे कोइ अतिचार०॥४॥
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