Book Title: Sadhu Pratikraman Sutrani Tatha Sadhu Vidhi Prakash
Author(s): Kshamakalyan Upadhyay
Publisher: Govindjibhai Harshi Punshi

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir | काचा पाणी तणा छांटा लाग्या । तेडकार्य बीज दीवातणी उजेही हुई । वाकाय उघाडे मुखे बोल्या महावाय | वाजतां कपडा कांबली तणा छेड़ा साचव्या नहीं फूंक दीधी । वनस्पतिकाय नीलफूल सेवाल थुड फूड फल फूल वृक्षशाखा प्रशाखा तणा संघह परंपर निरंतर हुवा । असकाय बेइंद्री तेइंद्री चरिंद्री पंचेंद्री काग बग उडाव्या, ढोर त्रासव्यां, बालक बीहाव्यां ॥ प्रकाय विषइ‌ओ अनेरो जे कोइ अतिचार० ॥ ७ ॥ अकल्पनीय सज्झा वस्त्र पात्र पिंड परिभोगव्यो । सिज्जातरतणो पिंड परिभोगव्यो । उपयोग कीधो पाखे विहर्यो, धात्रीदोष, त्रस बीज संसक्त पूर्वकर्म्म पश्चात्कर्म उद्गम उत्पादना दोष चिंतव्या नहीं, गृहस्थतणो भाजन भांज्यो फोड्यो बली पाछो आप्यो नही, सूतां संथारिया उत्तरपट्टा टलतो अधिको उपगरण वावय, देशतः स्नान मुखे भीनो हाथ लगाड्यो, सर्वतः स्नानतणी वांछा कीधी, शरीरतणो मल फेड्यो, केश रोम नख स| मार्या अनेरी कांई राढा विभूषा कीधी अकल्पनीय पिंडादि विषइओ अनेरो जे कोइ० ॥ ८ ॥ आवस्सय सज्झाए, पडिलेहणज्झाण भिक्ख अभत्तट्टे || आगमणे नीगमणे ठाणे निसिअणे तु अहे ॥ १ ॥ आवश्यक उभयकाल व्याक्षिप्त चित्तपणे पडिक्कमणो कीधो, पडिकमणा मांहि उंध आवी, बेठां पडिक्कमणुं की धुं दिवसप्रते चार वार सज्झाय सातवार चैत्यवंदन न कीधां, पडिलेहणा आधी पाछी भणावी अस्तो व्यस्त कीधी | आर्त रौद्र ध्यान ध्यायां, धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यायां नही, गोचरी गयां बेतालीश दोष उपजता चिंतव्या नही For Private And Personal Use Only

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