Book Title: Sadhu Pratikraman Sutrani Tatha Sadhu Vidhi Prakash
Author(s): Kshamakalyan Upadhyay
Publisher: Govindjibhai Harshi Punshi

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Page 29
________________ Shun Mahavir Jain Arachana Kondra Acharya Shri Kasagar Gyanmandit 434 परिवजंतो गुत्तो । रक्खामि महव्यए पंच ॥ २७॥ चत्तारि अ सुहसिज्झा । चउब्विहं संवरं समाहिजा ॥ उबसंपन्नो जुत्तो । रक्खामि महब्बए पंच ॥ २८ ॥ पंचेव य कामगुणे । पंचेव य अण्हवे महादोसे । परिवज्जतो गुत्तो। रक्खामि महब्बए पंच ।। २९ ॥ पंचिंदिअसंवरणं । तहेव पंचविहमेव सज्झायं ॥ उपसंपन्नो जुत्तो। रक्खामि महब्वए पंच ।। ३०॥ छज्जीवनिकायवहं । छप्पि अ भासाओ अप्पसत्धाओ । परिवतो गुत्तो.। रक्खामि महब्बए पंच ॥ ३१॥ छविहमम्भितरयं । बज्झं पि अ छब्विहं तवो कम्मं ।। उपसंपनो जुत्तो। रक्खामि महब्बए पंच ॥ ३२॥ सत्त य भयहाणाई। सत्तविहं चेव नाणविभंग ॥ परिवजलो गुत्तो। रक्खामि | महब्बए पंच ॥ ३३ ॥ पिंडेसण-पाणेसण। उग्गह सत्ति कया महज्झयणा ॥ उपसंपन्नो जुत्तो । रक्खामि महब्बए पंच ।। ३४ ॥ अट्ठ य मयट्ठाणाई। अह य कम्माई तेसिं बंधं च । परिवजतो गुत्तो। रक्खामि महव्यए |पंच ।। ३५॥ अह य पवयणमाया । दिट्ठा अट्टबिह निहिअहेहिं ॥ उपसंपन्नो जुत्तो । रक्खामि महब्बए पंच ॥ ३६॥ नव पावनिआणाई संसारत्था य नवविहा जीवा ।। परिवजंतो गुत्तो । रक्खामि महब्बए पंच ॥ ३७॥ | नव बंभचेरगुत्तो । दुनवविहं बंभचेरपरिसुद्धं ॥ उवसंपन्नो जुत्तो। रक्खामि महब्वए पंच ।। ३८॥ उवधापं च | दसविहं । असंवरं तह य संकिलेसं च ॥ परिवजंतो गुत्तो । रक्खामि महब्बए पंच ॥ ३९ ॥ सचसमाहिट्ठाणे। |दस चेव दसओ समणधम्मं च ॥ उवसंपन्नो जुत्तो । रक्खामि महब्बए पंच ॥४०॥ आसायणं च सव्वं । For Private And Pemon Use Only

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