Book Title: Sadhu Pratikraman Sutrani Tatha Sadhu Vidhi Prakash
Author(s): Kshamakalyan Upadhyay
Publisher: Govindjibhai Harshi Punshi
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SALMahavir.jain AmdhanaKendra
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साधुसाध्वी ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार, ए पंचविध आचार मांहि,जे कोइ अतिचार पक्ष दिवस-या प्रतिक्रमण
मांहि सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुओ होय ते सवि हुं मन वचन कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं ॥१॥ ॥४॥
तत्रज्ञानाचारे आठ अतिचार ।। काले विणए बहुमाणे। उवहाणे तय निन्हवणे ।।वंजण अत्थ तदुभए। अठ-- विहो नाणमायारो॥२॥ ज्ञानकालवेलामाहे, पढ्यो गुण्यो परावयों नहीं, अकाले पढ्यो विनयहीन बहुमा
नहीन योगोपधानहीन अनेरा कन्हे पढ्यो, अनेरो गुरु कह्यो, देववंदण वांदणे पडिकमणे सज्झाय करतां प-15 Hढतां गुणतां कूडो अक्षर काने मात्रै आगलो ओछो भण्यो गुण्यो, सूत्रार्थ तदुभय कूडा कयां, काजो अण
उधों डांडा अणपडिलेह्यां वस्ति अणसोध्यां अणपवेयां असज्झाइ अणोझा कालवेला माहीं श्रीदशवैकालिक प्रमुखसिद्धान्त पढ्यो गुण्यो परावों अविधे योगोपधान कीधा कराव्या, ज्ञानोपगरण पाटी पोथी ठवणी कबली नोकरवाली सांपडा सांपड़ी दस्तरी वही कागल ओलिआ प्रते पग लाग्यो, थूक लाग्यो, थूके अक्षर भांज्यो, ज्ञानवंतप्रते प्रदेष मच्छरवह्यो अंतराय अवज्ञा आशातना कीधी, कुणहिपते तोतलो बो-: बडो देखी हस्यो वितों , मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मनपर्यवज्ञान केवलज्ञान, ए पांच ज्ञान तणी आ-IN
॥४ ॥ |शातना कीधी। ज्ञानाचार विषइओ अनेरो जे कोइ अतिचार० पक्ष दिवस मांहिं सूक्ष्म बादर जाणतां IN|अजाणतां हुओ होय ते सचि हुं मन० ॥२॥
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