Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ ६२०) किसी बालक के कन्धे पर चढ़ता है। अंधेरे में रखी चीज़ों को यह मणिमय आभूषणों के प्रकाश में पहचान लेता है । कहने पर बिठाई वारता है। नन्द और यशोदा पूर्वभव में द्रोणयसु और धरा थे । ब्रह्मा के आशीर्वाद से वे इस जन्म में नन्द और यशोदा हुए। एक बार दही मथती हुई यशोदा के पास बालक कृष्ण आता है। यह दही मथना छोड़कर दूध पिलाने लगती है । फिर उफनते दूध को उतारने जाती है । बालक को क्रोध आ जाता है और वह दही का मटका फोड़कर दूसरे कक्ष में चला जाता है। पूर्वभव के कुबेरपुत्र (नलकूबर और मणिग्रीव) को नारद ने वृक्ष बनने का अभिशाप दिया था। श्रीकृष्ण ऊखल घसीटते हुए यमलार्जुन वृक्ष के पास पहुंचते हैं, जो अभिशप्त नरक बर थे। वह उनके बीच से निकलते हैं और वे दोनों वृक्ष तड़तड़ करके टूट जाते है । उत्पातों के बर से नन्द गोकुल से वृन्दावन जाने का फैसला करते हैं । वृन्दावन में बसने के माद, एक देस्य वहां मछाड़ा बनकर आता है। श्रीकरण इसकी पकड़कर मैथ वृक्ष पर पछाड़ देते हैं । फिर बकासुर का नाश करते हैं। उसके बाद अघासुर का । अघासुर अजगर का रूप छनाकर लेट जाता है । कृष्ण उसके मुंह में घुसकर उसे फाड़ देते हैं। एक बार वह बन में बछड़ों को ढूंढने जाते हैं । इधर ब्रह्म। कुतुहलवश ग्यालवालों को छिपा देता है। ब्रह्मा को छकाने के लिए वे स्वयं बछड़ा बन जाते हैं। वह ब्रह्मा को मोहित करते हैं । उन्हें सभी बालक और बछड़े कृष्ण स्वरूप दिखाई देते हैं । ब्रह्मा उनकी स्तुति करते हैं । छह बर्ष के होने पर दोनों भाई गायें चराने जाते हैं । श्रीकृष्ण बलराम की स्तुति करते हैं। श्रीदामा और स्तोक कृष्ण से पड़ोस के वन में चलने का आग्रह करते हैं। वहाँ के गधे रूप में आये हुए दैत्य का संहार करते हैं । धेनुकासर, भाई के मारे जाने पर, उनपर आक्रमण करता है। वे उसे परिवार के लोगों सहित ताड़ के वृक्ष पर पछाड़ देते हैं। घर लौटते हैं। यमुना के कुफ्ड में रहनेवाले कालियानाग को नाथ देते हैं। नाग और उसकी पलियां भगवान् की स्तुति करती हैं। शुकदेव परीक्षित को कालियानाग का पूर्व वृतान्त बताते हैं। श्रीकृष्ण दिव्य माला गन्ध, वस्त्र, महामुल्य मणि और स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत होकर निकलते हैं। नन्द को चिन्ता। दावानल से स्वजनों का उद्धार । दोनों ग्यालबालों के साथ वन में कीड़ा करते हैं। एक राक्षस ग्वालबाल बनकर आता है, वह मित्र बनता है । ग्वालबाल भांडीर वट वृक्ष के पास पहुंचते हैं । प्रलम्बासुर बलराम को पीठ पर लाद कर भागना चाहता है परन्तु वह ऐसा कर नहीं पाता। बलराम उसे मार देते हैं । गायें गुजाटवी (सरकंडों के वन) में घुस जाती हैं। वे पता लगाकर उस वन में पहुंचते हैं। तभी वन में आग लग जाती है। वह योगमाया से आग पी लेते हैं और गायें लेवार वापस आ जाते हैं । विभिन्न ऋतुओं में वह वन में क्रीड़ा करते हैं। शरदऋतु में वेणुगीत का आयोजन होता है । मुरली की तान सुनकर गोपियाँ व्याकुल हो उठती हैं, वे युन्दावन की हर चीज की सराहना करती हैं, उन्हें प्रेम की व्याधि लग जाती है। वे प्रतिदिन लीलाओं का स्मरण करती हैं। हेमन्त ऋतु में कात्यायनी देवी की पूजा करती हैं । सवेरे-सवेरे समूह में लीलागान करती हुई यमुना में स्नान करती हैं। कृष्ण वस्त्र ज्या लेते हैं और अकेले या सामूहिक रूप में पाकर वस्त्र लेने की बात करते हैं । (चीरहरण का अभिप्राय अत्तियों का आवरण नष्ट हो जाना है और उनका, वृत्तियों का, आत्मा में रम जाना 'रास' है । गीता में धर्म से अविरुद्ध काम को परमात्मा का स्वरूप माना गया है।) भूख मिटाने के लिए ग्वालबाल आंगिरस यज्ञ में पहुंचते हैं, जो वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा आयोजित था। ग्वालबाल कहते हैं- "हमें बलराम और श्रीकृष्ण ने भूख मिटाने आपकी

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