Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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रत्नपरीक्षा का परिचय वेदों में रत्न शब्द का प्रयोग कीमती वस्तु और खजानों के अर्थ में हुआ है । ऋग्वेद में तीन जगह (फिनो, पृ० १५) सप्त रत्नों का उल्लेख है । मणि का अर्थ ऋग्वेद में तावीज की तरह पहननेवाले रत्नों से है (ऋग्वेद, १।३।८; अ० वे० २२९२, २।४।१ इत्यादि ) मणि तागे में पिरोकर गले में पहनी जाती थी (वाजसनेयी सं० ३०१७; तैत्तिरीयसं ३।४।३।१ ) इसमें भी संदेह नहीं कि वैदिक आर्यों को मोती का भी ज्ञान था। मोती ( कृशन) का उपयोग शृंगार के लिए होता था (ऋग्वेद, २।३५/४; १०।६८।१; अथर्ववेद ४।१०।१-३)
'सुव्यवस्थित रत्नशास्त्रों के अनुसार नव रत्नों में पांच महारत्न और चार उपरत्न हैं। वज्र, मुक्ता, माणिक्य, नील और मरकत महारत्न हैं। गोमेद, पुष्पराग, वैडूर्य (लहसनिया ) और प्रवाल उपरत्न हैं । मानिक और नीलम के कई भेद गिनाए गए हैं । वराहमिहिर ( ८२।१ ) तथा बुद्धभट्ट (११४) के अनुसार मानिक के चार भेद यथा-पद्मराग, सौगंधि, कुरुविंद और स्फटिक हैं। अगस्तिमत (१७३) के अनुसार मानिक के तीन भेद हैं, यथा-पद्मराग, सौगंधिक, कुरुविंद । नवरत्नपरीक्षा (१०९-११०) में इनके सिवाय नीलगंधि मी आ गया है। अगस्तीय रत्नपरीक्षा में (४६ से) मानिक का एक नाम मांसपिंड भी है। ठक्कुर फेरू के अनुसार (५६) मानिक के साधारण नाम माणिक्य और चुन्नी है, अब भी मानिक के ये ही दो नाम सर्वसाधारण में प्रचलित हैं। मानिक के निम्नलिखित भेद गिनाए गए हैं- पाराय (पद्मराग ), सौगंधिय (सौगंधिक), नीलगंध, कुरुविन्द और जामुणिय ।
रत्नपरीक्षाओं में नीलम के तीन भेद गिनाए गए हैं-नील साधारण नीलम के लिए व्यवहृत हुआ है तथा इन्द्रनील और महानील उसकी कीमती किस्में थीं। ठकुर फेरू ने (८१) नीलम की केवल एक किस्म महिंदनील (महेन्द्रनील) बतलाया है।
प्राचीन रत्नपरीक्षाओं में पन्ने के मरकत और तार्क्ष्य नाम आए हैं। पर ठक्कुर फेरू (७२) ने पन्ने के निम्नलिखित भेद दिए हैं- गरुडोदार, कीडउठी, बासउती, मूगउनी, और धूलिमराई। , उपर्युक्त नव रत्नों की तालिका प्रायः सब रत्नशास्त्रों में आती है पर अगस्तिमत (३२५-२९) में स्फटिक और प्रभ जोड़कर उनकी संख्या ग्यारह कर दी गई है। बुद्धभट्ट ने उस तालिका में पांच निम्नलिखित रत्न जोड़ दिए हैं - यथा शेष (onyx) कर्केतन (thrysobenyl ) भीष्म, पुलक (garnet) रुधिराक्ष (carnelial) शेष का ही अरबी जज रूपान्तर है । यह पत्थर भारत और यमन से आता था। इसके बहुत से रंग होते हैं जिनमें सफेद और काला प्रधान है। भारत में इस पत्थर का पहनना अशुभ
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