Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 36
________________ रत्नपरीक्षा का परिचय १९ जाता था । इन रत्नों की बड़ी से बड़ी तौल एक टांक और छोटी तौल एक गुंजा मान ली गई है। पर एक टांक में १० से १०० तक चढ़नेवाले मोती तथा एक गुंजा में १ से १२ थान तक चढ़नेवाले हीरे का मूल्य चांदी के टांक में होता था । उपर्युक्त रत्नों के तौल और मूल्य दो यंत्रों में समझाए गए हैं' कीमती रत्न सम्बन्धी यंत्र गुंजा १ २ ३ ४ ५ ६ ७ १८ ९ १० ११ १२ १५ १८ २१ ૨૪ हीरा ५ | १२ २०३० ५०|७५|११०|१६० २४०|३२०|४०० ६०० १४०० २८०० ५६०० ११२०० ************************************************ मोती ० ॥ १ २ ४ ८ १५/२५ ४० ६० ८४ ११४ १६० ३६० ७०० | १२०० २००० मानिक २ ५८ |१२|१८| २६/४० ६० ८५ १२० | १६० २२० ४२० ८०० १४०० २४०० पना |०|० ॥ ११॥ २ ३ ४ ५ ८ १० १३ १८ २७ ४० ६०. उपर्युक्त यत्र की जांच से कई बातों का पता लगता है । सबसे पहली बात तो यह है कि अलाउद्दीन के काल में और युगों की तरह हीरे की कीमत सब रत्नों से अधिक थी । हीरा जैसे जैसे तौल में बढ़ता जाता था उसी अनुपात में उसकी कीमत बढ़ती जाती थी । बारह रत्ती तक तो उसका दाम क्रमशः बढता था पर उसके बाद हर तीन रत्ती के वजन पर उसका दाम दुगना हो जाता था । अगर चांदी और सोने का अनुपात १० : १ मान लिया जाय तो एक टांक के हीरे का मूल्य १,२०००० चांदी के टांक के बराबर होता था । इसके विपरीत एक टांक के मोती का मूल्य २००० और मानिक का २४०० सुवर्ण टंका था । पन्ने का दाम तो बहुत ही कम यानी एक टंक के पन्ने का दाम ६० सुवर्ण टंका था । छोटे मोती और हीरों के तौल और दाम का यंत्र - मोती(टंक १)|१०|१२|१५/२०,२५/३० ४०,५०,६०-७० ७०-१०० रूप्यटक वज्रगुंजा रूप्य टंक ५० ४० ३० २०,१५१२ १०/८ 19 ११ २ ३ ४५ ६ ७ ८ ९ |३५ २६ २० १६ १३ १० ८ ७ ६ |३ १० Jain Educationa International ५ ११ १२ ४ ૨ उपर्युक्त यंत्र से यह पता चलता है कि मोती और हीरे जितने अधिक एक टांक में चढ़ते थे उतना ही उनका दाम कम होता जाता था और इसीलिए उनका दाम सोने के टांकों में न लगाया जाकर चांदी के टांको में लगाया जाता था । रत्न शास्त्रों के अनुसार नकली हीरा लोह, पुखराज, गोमेद, स्फटिक, वैडूर्य और शीशे से बनता था । ठक्कुर फेरू ( ३७ ) ने भी इन्हीं वस्तुओं को नकली हीरा बनाने के काम का उल्लेख किया है। नकली हीरे की पहचान अम्ल तथा दूसरे पत्थरों के काटने की शक्ति से होती थी । ठक्कुर फेरू ( ४८ ) के अनुसार नकली हीरा वजन में भारी, जल्दी बिंधनेवाला, पतली धार वाला तथा सरलतापूर्वक घिस जानेवाला होता था । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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