Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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गणितसार - तृतीयाध्याय ५. अथ संकलित्यैक्यानयने आहइग चय संकलियंकं वि जुएण पएण गुणिवि तिहु भायं । लडं संकलिय जुई न संसयं इत्थ नायचं ॥ ३१ संकलिय वग्ग तह घणं पिहु पिहु पंचाण किं हवइ इक्कं । गणिऊण भणसु सिग्धं जय गणियविहिं वियाणासि ॥ ३२ ६. अथ वर्गकघनैक्यानयनमाह- . इच्छपय बिउणसेगं ति हरिय संकलिय गुणिय वग्गजुई । संकलियवग्गु जं हुइ तं घणपिंडं वियाणेहि ॥ ३३ ७. अथ संकलितवर्गघनैक्यानयने आहसेग बिउण पय पय गुण सेग पयद्धेण गुणिय हुइ जं तं । संकलियवग्ग तह घण तिन्हाण जुई मुणेयत्वं ॥ ३४
॥ इति सेढीव्यवहारे सूत्रगाथा सम्मत्ता ॥ अथ क्षेत्रव्यवहारमाहचउरंस दीह चउरस विक्खंभायामु गुणिय तं खेत्तं । चउरंसे छ कर भुया ति पंच कर दीह चउरंसे ॥ ३५ भुव पिंडई चउहा कमेण भुवहीण सेस गुण सुकमे । तस्स पए तं खित्तं तिभुए अ चउन्भुए जाण ॥ ३६ मुहभुव कर पणवीसं भूमिभुवं सट्ठि वाम वावन्नं । दाहिण उणयालीसं किं जायइ तस्स खित्तफलं ॥ ३७ भूमिभुव हत्थ चउदस तेरस एगं च बीय पन्नरसं । एवं विसम तिकोणं खित्तफलं अस्स किं हवइ ॥ ३८ सयलाण चउरसाणं भूमुह जोयद्ध लंब गुणखित्तं । तंसाण भूभुवद्धं लंबगुणं हवइ खित्तफलं ॥ ३९ भुवजुव तेरस पनरस भूभुव इगवीस पंच हत्थ मुहे । मझे लंबु दुवालस एरिसखित्तस्स किं माणं ॥ ४०
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