Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 195
________________ ९८ ठकुर - फेरू - विरचित चउकूणा चउभद्दा सव्वे पासाय होंति नियमेण । कूणस्सुभयादिसेहिं दलाई जा होंति' भद्दाई ॥ ६ पडिरह १ बोलिंजरया २ नंदी ३ सुकमेण ति पण सत्त दला । पल्लवियं करणिक्कं अवस्स भइरस दुण्ह दिसे ॥ ७ दो भाय कुणओ हुइ कमेण पाऊण जा भवे नंदी | पायं ० ।, एग १, दुसडुं २||, पल्लवियं कैरणियं भदं ॥ ८ भर्द्धं दस भायं तरसाओ मूल नासियं एगं । पउणाति तिय सवातिय २||) ३) ३) दैलेहिं सुकमेण नायव्वं ॥ ९ कूणं पडिरह य रहं भदं मुहभद्द मूलअंगाई | नंदी करणिक पल्लव तिलय तवंगाइ भूसणयं ॥ १० ॥ इति विस्तरं ॥ १ खुर १ कुंभ२ कलस३ कइवलि४ मच्ची ५ जंघा य६ छज्जि७ उरजंघा ८ । भरणि ९ सिरवट्टि १० छज्जय ११ वइराडु १२ पहारु १३ तेर थरां ॥ ११ ३ १॥ | ५॥ १॥ १॥ १॥ २ Jain Educationa International १॥ २ १॥ इग तिय दिवड तिहुँढे पण सड्ढा इग दु दिवदु दिवढो य । दो दिवढु दिवदु भाया पणवीसं तेर थरमाणं ॥ १२ १॥ पासायरस पमाणं गणिज्ज सहभित्ति कुंभगथराओ । तस्य दस भागाओ दो दो भित्तीहि रस ६ गब्भे ॥ १३ इग दुति च पण हत्थे पासाइ खुराउ जा पहारथरो । नव सत्त पण ति एवं अंगुलजुत्तं कमेणुदयं ॥ १४ इच्चाइ ख-बाणते ५० पsिहत्थे चउदसंगुल विहीणा । इय उदयमाण भणियं अओ य उट्टं भवे सिहरं ॥ १५ 1 पsिहोंति १ दुनि । २ दो भाय हवइ कूणो । ३ करणिकं । पपि परिहाईसु । ५ तिसुकमि । ६ पहारू । For Personal and Private Use Only ४ कमेण www.jainelibrary.org

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