Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 200
________________ १०३ वास्तुसार-तृतीयं प्रकरण गम्भाउ छजओ हुइ सवाउ सतिहाउ दिवढु वित्थारे । वित्थाराउ सवाओ उदएण य निग्गमे अद्धो ॥ ५६ छज्ज-उड-थंभ-तोरणजय उवरे मंडओवमं सिहरं । आलयमझे पडिमा छज्जयमझमि जलवढें ॥ ५७ गिहदेवालयसिहरे धयदंडं नो करिज कइयावि । आमलसारय कलसं कीरइ इय भणिय सत्थेहिं ॥ ५८ सिरिघंधकलस-कुलसंभवेण चंदासुएण फेरेण । कन्नाणपुरठिएण य निरक्खिउं पुव्वसत्थाई ॥ ५९ सिपरोवगारहेऊ नयण-मुणि-राम-चंद (१३७२) वरिसम्मि ! विजयदसमीइ रइयं गिहपडिमालक्खणाईणं ॥ ६० इति परमजैनश्रीचन्द्राङ्गजठकुरफेरूविरचिते वास्तुसारे प्रसादविधिप्रकरणं तृतीयं समाप्तं ॥ ॥ एवं वास्तु प्रपरणं त्रय गाथा २०५ ॥ १ हवइ छज्जु । २ करिजइ कयावि। ३ आमलसारं । + मुद्रितपुस्तके इयं गाथा पूर्व लिखिता, पश्चाद् उपरितनगाथा विद्यते । For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206