Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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ठकुर -फेरू-विरचित सम कट्ठा विसम खणा सव्वपयारेसु इय विही कुज्जा। पुव्वुत्तरेण पल्लव जमावरा मूल कायव्वा ॥ १०२* हल-घाणय-सगड-मई-अरहट्टजंताणि कंटई तह य । पंचुंबरि खीरतरू एयाण य कट्ठ वजिज्जा ॥ १०३ बिज्जउरि केलि दाडिम जंभीरी दो हलिद अंबिलिया। बब्बूलि बोरि माई कणयमया तहवि नो कुज्जा ॥ १०४ एयाणं जईये जडा पाडवसाओ पविस्सई अहवा। छाया वा जंमि गिहे कुलनासो हवइ तत्थेव ॥ १०५ संसुक्क भग्ग दड्डा मसाण खग निलय खीर चिरदीहा । निंब बहेडय रुक्खा नहु कट्टिजति गिहहेऊ ॥ १०६ पाहाणमयं थंभं पीढं पट्टं च बारउत्ताई। एए गेहिविरुद्धा सुहावहा धम्मठाणेसु ॥ १०७ पाहाणमए कट्टे कट्ठमए पाहणस्स थभाई। पासाए य गिहे वा वजियव्वा पयत्तेणं ॥ १०८ पासाय-कूव-वावी-मसाण-मठ-रायमंदिराणं च । पाहाण-इट्ट-कट्ठा सरिसममत्ता वि वजिज्जा ॥ १०९ सुगिहजलो उवरिमओ खिविज नियमज्झि नन्नगेहस्स । पच्छा कहवि न खिप्पइ इय भणियं पुव्वसत्थंमि ॥ ११० ईसाणाई कोणे नयरे गामे न कीरए गेहं । संतलोयाण असुहं अंतिमजाईण रिद्धिकरं ॥ १११ देव-गुरु-वहि-गोधण-समुहे चरणे न कीरए सयणं । उत्तर सिरं न कुजा न नग्गदेहा न अल्लपया ॥ ११२ *मु. पु. पाठभेदो यथा- 'सव्वेवि भारवटा मूलगिहे एगिसुत्ति कीरति ।
पीढ पुण एगसुत्ते उवरयगुंजारि-अलिंदेसु' ॥ १४५ ॥ १ जइवि । २ पाडिवसा; पाडोसा। ३ सुसुक्क। ४बारउचाणं । ५विधिकरं। ६संमुह ।
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