Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 188
________________ वास्तुसार-प्रथमप्रकरण धुत्तामच्चासन्ने परवत्थुदले चउप्पहे न गिहं । गिह-देवलपुग्विल्लं मूलदुवारं न चालिज्जा ॥ ११३ गो-वसह-सगडठाणं दाहिणए वामए तुरंगाणं । गेहस्से वारभूमी संलग्गा साल ऐयाणं ॥ ११४ गेहाउ वाम दाहिण अग्गिम भूमी गहिज जइ कजं । पच्छा कहव न लिज्जइ इय भणियं परमैनाणीहिं ॥ ११५ ॥ इति श्रीचन्द्राङ्गज-ठकुर-फेरू-विरचिते वास्तुसारे गृहलक्षणप्रकरणं प्रथमं समाप्तम् ॥ १ गिहबाहिरभूमिए। २ सालए ठाणं। ३ पुव्वनाणीहिं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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