Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 180
________________ वास्तुसार प्रथमप्रकरण + मुद्रितपुस्तके एतदन्तरं निम्नलिखिता गाथा लभ्यन्ते ओवरय नाम साला जेणेग दुसालु भण्णए गेहं । गइ नामं च अलिंदो इग दु तिऽलिंदोइ पटसालो | ६५ पटसाल बार दुहु दिसि जालिय भित्तीहिं मंडवो हवइ । पिट्ठी दाहिण वामे अलिंद नामेहिं गुंजारी ॥ ६६ जालिय नामं मूसा थंभय नामं च हवइ खडदारं । भार पट्टो य तिरिओ पीढ कडी धरण एगट्ठा ॥ ६७ ओवरय-पसाला - पर्जतं मूलगेह नायव्वं । एअस्स चेत्र गणियं रंधण गेहाड़ गिहभूसा ।। ६८ ओवर- अलिंद-गई गुजारि - भित्तीण पट्टथंभाण । जालिय मंडवाण य भेएण गिहा उवजंति ।। ६९ चउदस गुरु पत्थारे लगुरुभेएहिं सालमाईणि । जायंति सव्व गेहा सोल सहस्स ति सय चुलसीआ ।। ७० ततो य जिं किवि संपइ व ंति धुवाइ संतणाईणि । ताणं चिय नामाई लक्खणचिण्हाई बुच्छामि ॥ ७१ ध्रुव १ धन्न २ जयं ३ नंं ४ खर ५ कंत ६ मणोरमं ७ सुमुह ८ दुमुहं ९ । कूर १० सुपक्ख ११ धणद १२ खय १३ अक्कंद १४ विउल १५ विजय १६ गिही ॥ ६२ षोडश गृहम् Ssss घुय 1555 धन्य 5155 जय . ।। ऽ ऽ नंद 5515 खर 1 515 कंत S 11s मनोरम ।।। ऽ सुमुह Sss | दुमुह 15 51 क्रूर S 151 सुपक्ष ॥ ऽ । धणद SS 11 क्खय | | 5 || अकंद |5|| विउल ।।।। विजय १ चत्तारि गुरुठविडं | Jain Educationa International 1 २ जाव । वि च गुराइ सुकमे लहुओ गुरु हिट्ठि सेस उवर समा । ऊणेहिं गुरु एवं पुणो पुणो जोम सव्वलहू ॥ ६३ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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