Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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ठक्कुर-फेरू-विरचित सौभाग्यकर, विषहर, धृतिकर, पुष्टिकर, शत्रुहर, अंजन, ज्योतिरस, शुभरुचि, शूलमणि, अंशुकालि, देवानन्द, रिष्टरत्न, कीटपंख, कसाउला, धूमराइ, गोमूत्र, गोमेद, लसणीया, नीला, तृणधर, खगराइ, वजधार, षट्रोण, कणी, चापडी, पिरोजा, प्रवाला, मौक्तिक ।
उपर्युक्त तालिका के अध्ययन से इस बात का पता चलता है कि ग्रंथकार ने उसमें रत्नों और उपरत्नों के सिवाय उनके भेद, गुण, दोष इत्यादि की भी गिनती कर ली है । जैसे पत्नराग, माणिक, सींधलिया और सौगंधिक मानिक के भेद हैं। मरकत के भेद में ही गरुडोद्गार, मणि, मरकत, धूमराई और कीटपंख आ जाते हैं । स्फटिक के भेदों में चन्द्रकांत, जलकांत, शिवकांत, चन्द्रप्रभ, साकरप्रभ, प्रभानाथ, गंगोदक, हंसगर्भ, कसाउला (काषाय) आ जाते हैं। पुखराज, कर्केतन, वज्र, वैडूर्य, अशोक, वीतशोक, पुलक, अंजन; ज्योतिरस, अंशुकालि, मसारगल्ल, रिष्टरत्न, गोमूत्र, गोमेद, लहसनिया, नीला, पिरोजा, मोती, मूंगा अलग अलग रत्न या उपरत्न हैं । अपराजित, सुभग, सौभाग्यकर, विषहर, धृतिकर, पुष्टिकर, शत्रुहर, देवानन्द, तृणधर, रत्नों के गुण से सम्बन्ध रखते हैं। वज्रधार, षट्रोण, कर्णी और चापड़ी रनों की बनावट से सम्बन्धित हैं।
___ यहां बौद्ध और जैन शास्त्रों में आई रत्नों की तालिकाओं की ओर भी ध्यान दिला देना आवश्यक मालूम होता है । चुल्लवग्ग ( ९।१।३ ) में मुत्ता, मणि, वेलरिय, शंख, शिला, पवाल, रजत, जातरूप, लोहितंक और मसारगल्ल के नाम आए हैं । मिलिन्द्र प्रश्न (पृ० ११८) में इंदनील, महानील, जोतिरस, वेलुरिय, उम्मापुप्फ, सिरीस पुप्फ, मनोहर, सूरियकंत, चंदकंत, वज्र, कजोपमक, फुस्सराग, लोहितंक और मसारगल्ल के नाम आए हैं। सुखावती व्यूह (५६ ) में वैडूर्य, स्फटिक, सुवर्ण, रूप, अश्मगर्भ, लोहितिका और मुसारगल्ल नाम आए हैं । दिव्यावदान में रत्नों की दो तालिकाएं हैं । एक में (पृ० ५१) मुक्ता, वैडूर्य, शंख, शिला, प्रवालक, रजत, जातरूप, अश्मगर्भ, मुसारगल्ल, लोहितिका और दक्षिणावर्त के नाम हैं, और दूसरीमें (पृ० ६७) पुष्यराग, पद्मराग, वज्र, वैडूर्य, मुसारगल्ल, लोहितिका, दक्षिणावर्त शंख, शिला और प्रवाल के नाम हैं । जैन प्रज्ञापना सूत्र (भगवान दास हर्षचन्द्र द्वारा अनूदित १, पृ० ७७, ७८) में वदूर, जग ( अंजण ), पवाल, गोमेज, रुचक, अंक, फलिह, लोहियक्ख, मरकय, मसारगल्ल, भुयमोयग, इंदनील, हंसगब्भ, पुलक, सौगंधिक, चन्द्रप्रभ, वैडूर्य, जलकांत और सूर्यकांत के नाम आए हैं । चुल्लवग्ग की तालिका में शिला से शायद स्फटिक से मतलब है । मिलिंद प्रश्न की तालिका में उम्मपुष्फ से शायद जमुनिया का; शिरीषपुष्पक से (अ० शा० २।११।२९) शायद किसी तरह के वैडूर्य का बोध होता है । कज्जोपमक से शायद चिन्तामणि रत्न की ओर इशारा है जो सब काम पूरा करता था । वराहमिहिर का (बृ० सं० ८०५) ब्रह्ममणि भी शायद चिन्तामणि ही हो । सुखावती व्यूह के अश्मगर्भ से शायद पन्ने का मतलब हो ( अमरकोश २।९।९२ )।
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