Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 7
________________ प्रेमाख्यानों का संकलन है । इसका सम्पादच प्रतिष्ठान के कैटलॉगिंग सहायक पोस्वामिश्रीलक्ष्मीनारायण दीक्षित ने किया है। इन वार्ताओं का गद्य प्रसंगानुसार पर्चाशों से अनुप्रारिणत है। राजस्थानी कथाएँ बड़े परिमाण में कही, सुनी और लिखी जाती रही हैं। ऐसी अवस्था में कथा कहने वाले और लिपिकर्ता इन कथाओं में अपनी रुचि के अनुसार परिवर्तन कर गद्यांश में पद्य जोड़ते रहे हैं। इस प्रकार राजस्थानी गद्य-कथाओं का परिकार और विस्तार होता ही रहा है । इस संकलन की कथाओं में ऐतिहासिक पुट देने का भी प्रयत्न किया गया है किन्तु ऐतिहासिक तिथिक्रम की कसौटी पर वे तथ्य पूरे खरे नहीं उतरते हैं। सम्पादकीय वक्तव्य में अनेक तथ्यों का अध्ययनपूर्वक उद्घाटन किया गया है। इस पुस्तक को अधिकाधिक उपयोगी बनाने का प्रयत्त किया गया है। इस प्रकार पुस्तक को उत्तमतया सम्पादित करने के लिये श्रीगोस्वामीजी बधाई के पात्र हैं । राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर के संचालक डॉ. नारायणसिंह भाटी ने अपनी विद्वत्तापूर्ण भूमिका में राजस्थानी गद्य की प्राचीनता, राजस्थानी गद्य के विभिन्न रूप, राजस्थानी कथानों का वर्गीकरण, प्रेम-कथाओं की सामान्य विशेषताएं पोर वार्तागत विषयों का याथातथ्य निरूपण किया है जिससे इस प्रकाशन की उपादेयता अध्ययनार्थियों के लिये संवद्धित हो गई है। तदर्थ हम डॉ० भाटी को हार्दिक धन्यवाद देते हैं। साथ ही रिसालू की वार्ता से सम्बद्ध "रिसाळ री औरत" शीर्षक चित्र उपलब्ध करने के लिये भी हम उनके प्राभारी हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन-व्यय का एक अंश "आधुनिक भारतीय भाषा विकास योजना (राजस्थानी)" के अन्तर्गत शिक्षा-मंत्रालय केन्द्रीय सरकार, दिल्ली से प्राप्त हुआ है। इस सहयोग के लिये हम प्रतिष्ठान की ओर से उक्त मंत्रालय के प्रति हार्दिक आभार प्रदर्शित करते हैं । प्राशा है कि इतः पूर्व प्रकाशित इस प्रकार के साहित्य-संग्रह के दो भागों के समान यह तीसरा भाग भी विद्वानों को पठनीय एवं उपयुक्त प्रतीत होगा । राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शाखा कार्यालय, चित्तौड़गा दिनांक १-१-६६ मुनि जिनविजय सम्मान्य संचालक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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