Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 4
________________ (२) गन्ध रहित टेशू के फल समान व्यर्थ ही है। जिस प्रकार अन्न का वोने वाला पुरुष अन्नके साथ ही तृणादि भी प्राप्त कर लेता है ठीक उसी प्रकार जैन धर्म द्वारा भात्मिक कल्याण के साथ ही हमारी सांसारिक उन्नतियां भी वरावर होती रहती हैं । ऐना जाग और मानकर हमारे ये नव युवक भार्य्य धर्म और भार्या कुमार सभा अमेर को तिलाञ्जलि देकर जैन धम्न में दृढ़ हुये और उन्होंने स्वपर कल्याणार्थ श्री जैन कमार सभा अजमेर नामक संस्था खोली। इसी सभाका बार्षिकोत्सव अजमेर में तारीख २८ जून से १ जुलाई सन् १९१२ ईस्वी ता होना निश्चित हुआ और उसके अर्थ यह निम्न विज्ञापन प्रकाशित किया गया । ॥ बन्देजिनवरम् ॥ अहिंसा परमो धर्मः * यतो धर्म स्ततो जयः श्रीजैन कुमार सभा अजमेर का प्रथम वार्षिकोत्सव । प्यारे सज्जनों ! जिस प्राचीन सर्व व्यापी जैन धर्मके नवयुवकोंकी यह सभा है वह धर्म किसी समयमें तीर्थ करादि महर्षियोंके सिंहनिनादसे समस्त भमण्डल पर बिस्तरित हो रहा था और उसकी विजय पताका चहुं ओर फहरा रही थी परन्तु कालदोषसे उसही धर्मके मार्तण्ड संचालकोंके अभावसे और इन दिनों अनेक मतमतान्तरों के घोर आच्छादन के कारण सारा संसार अन्धकारयुक्त होरहा है, ऐसी दशा देखकर हमारी परम भादरणीय ( श्रीमती जैनतत्त्व प्रकाशिनी समा इटावा ) ने पुनः सर्व सभ्य समाजके समक्ष सार्व भौम जैन धर्मका डंका बजाकर स्थाबाद गर्भित अनेकान्त नयसे तथा सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र रूपी रत्नोंके प्रकाशसे उस अन्धकारको नाश करनेका वीड़ा उठाया है। आज हम लोग सहर्ष आप लोगों के समक्ष यह हर्षोत्पादक शुभ समाचार सुनाते हैं कि हमारे इस वार्षिकोत्सवके समय ( ता० २८ जनसे १ जुलाई सन् १९१२ ई० तदनुसार मिती आषाढ़ प्रथम शुक्ल १४ शुक्रवारसे मिती भाषाढ़ द्वितीय कृषण २ सोमवार संवत् १९६९ तक ) उपर्युक्त श्री जैन तत्त्व प्रकाशि: नी सभा यहाँ पधार कर हम लोगोंके उत्साहको बढ़ावेगी और इसही अ

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