Book Title: Puja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 14
________________ xii... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... के गुणों का स्मरण, स्तवन, कीर्तन करने से मन मस्तिष्क में अपूर्व आनंद एवं अचिन्त्य शक्ति की अनुभूति होती है। मनोविकार निर्मल हो जाते हैं। तनाव एवं उदासीनता से मुक्ति मिलती है। जिनपूजा प्राचीनकाल से ही एक चर्चित विषय रहा है । आगमों में जिनपूजा विषयक दृष्टांत अनेक स्थानों पर वर्णित है। परमात्मा का जन्माभिषेक एक प्रकार से साक्षात परमात्मा की द्रव्य एवं भाव पूजा है। शाश्वत तीर्थों का उल्लेख जिनपूजा की अनादि निघनता को स्पष्ट रूप से सिद्ध करता है। ज्ञातासूत्र एवं राजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभ देवता द्वारा एवं द्रौपदी द्वारा की गई पूजा का वर्णन तथा भगवतीसूत्र में तुंगिया नगरी के जिन मन्दिरों का वर्णन एवं जिनपूजा की प्राचीनता के अकाट्य प्रमाण हैं। जिन पूजा के स्वरूप में अब तक कई परिवर्तन आए हैं। यदि जैन धर्म की सभी परम्पराओं के सन्दर्भ में सोचा जाए तो अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय केवल स्तुति स्तोत्र आदि के माध्यम से भाव पूजा को ही महत्त्व देता है यद्यपि भाव पूजा की यह परम्परा श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों के सभी पक्षों को स्वीकार है किन्तु द्रव्य पूजा को लेकर उनमें मतभेद देखे जाते हैं। दिगम्बर परम्परा की तेरापंथ शाखा जल आदि के माध्यम से जिन प्रतिमा के अभिषेक आदि को अंग पूजा के रूप में स्वीकार करती है शेष चंदन आदि का निषेध करती हैं जबकि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा जल, चंदन, पुष्प अर्चन आदि को स्वीकार करती है । दिगम्बर परम्परा की बीसपंथी शाखा जिन प्रतिमा के पादांगुष्ठ पर चंदन, केसर, पुष्प आदि चढ़ाना मान्य करती है । ये दोनों ही परम्पराएँ चाहे पूजनीय द्रव्यों को लेकर मतभेद रखती हों किन्तु अग्रपूजा के विषय में एक मत हैं। दिगम्बर परम्परा के तारणपंथी सम्प्रदाय में मात्र भाव पूजा को ही महत्त्व दिया जाता है वे द्रव्य पूजा का निषेध करते हैं। कई बार जैन धर्म के अनुयायियों को अन्य धर्म की तरफ आकृष्ट होने से रोकने के लिए कुछ अतिरिक्त क्रियाओं का प्रवेश भी करवाया गया जो कालान्तर में परम्परा ही बन गई। इसी कारण कुछ आडम्बरों का प्रवेश भी विधि-विधानों में हुआ। यही विरोध अमूर्तिपूजक संप्रदाय के उद्भव में हेतुभूत बना। आडंबर का विरोध कालान्तर में मूर्ति पूजा के विरोध में परिवर्तित हो गया। परन्तु वस्तुतः जिनपूजा एक प्रामाणिक तथ्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता।

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