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( ६ ) न्यायकुमुदचन्द्र आदि के कर्ता प्रभाचन्द्र भी पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के ही शिष्य हैं । प्रतएव क्रियाकलापटीका के रचयिता प्रस्तुत प्रभाचन्द्र ही जान पड़ते हैं।' प्रमेयकमलमार्तण्ड की अनुवादिका :
प्रमेयकमलमार्तण्ड की हिन्दी भाषा टीका अभी तक किसी ने नहीं लिखी थी। इसे पूज्य विदुषी आ. जिनमतीजी ने लिखकर सकल भारतीय दि. जैन समाज का महोपकार किया है-इस में शंका निरवकाश है । क्योंकि आजकल की हवा में संस्कृत या प्राकृत के ज्ञाता नहीं के तुल्य हैं । पूज्या माताजीश्री ने सरल-सुबोध शैली में यह भाषा टीका लिखी है। प्रेरणा के स्रोत :
इस भाषा टीका लिखने हेतु प्रेरणा पू० प्रायिका न्याय साहित्य-सिद्धान्त शास्त्री शुभमती माताजी (पूर्व नाम – विमलाबाईजी ) ने की थी। आपने शिक्षा प्रदात्रो प्रा० जिनमतीजी से प्रार्थना को थी कि इस ग्रन्थ की भाषा टीका न होने से शास्त्री परीक्षा में कठिनता होगी, अतः इसका हिन्दी में सारांश लिखिए । जिससे हमें सुविधा हो और बार-बार आपको पूछना न पड़े। आपकी इस प्रार्थना को पू० जिनमती माताजी ने स्वीकार की और भाषानुवाद प्रारम्भ किया और ८ मास में अनुवाद पूर्ण भी हो गया । आज यह ग्रन्थ ३ भागों में छपकर प्रकाशित हो गया है। यह देखकर आ. शुभमतीजी को अपार हर्ष है । यथा-- चामुण्डराय की प्रार्थना पर गोम्मटसार की रचना हुई तथैव आपकी प्रार्थना पर न्यायपारंगता जिनमतीजी द्वारा भाषा टीका पूर्ण हुई । विदुषी भाषाटीकाकों का देह-परिचय :
पूज्य माताजी जिनमतीजी का जन्म फाल्गुन शुक्ला १५ सं० १९६० को म्हसवड़ ग्राम [ जिला-सातारा ( महाराष्ट्र) ] में हुआ । जन्म नाम प्रभावती था। आपके पिता श्री फुलचन्द्र जैन और माता श्री कस्तुरीदेवी थीं । दुभाग्य से माता-पिता का वियोग बचपन में ही होगया। इसी कारण प्रापका लालन-पालन आपके मामा के घर पर हुआ।
सन् १९५५ में प्रायिका रत्न श्री ज्ञानमति माताजी ने म्हसवड़ में चातुर्मास किया । चातुर्मास में अनेक बालिकाएं माताजी से द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसूत्र, कातंत्र व्याकरण प्रादि ग्रन्थों का अध्ययन करती थी। उस समय विंशति वर्षीया सुश्री प्रभावती भी उन अध्येत्रो बालिकानों में से एक थी।
१. तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा ३।५०-५१ से साभार उद्धृत । २ म्हसवड़ ग्राम सोलापुर के पास है।
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