Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 7
________________ प्रस्तुत टीका : [ प्रमेयकमलमार्तण्ड ] - परीक्षामुख की उक्त टीकानों में से सर्वाधिक परिमाण वाली टीका १२००० श्लोकप्रमाण प्रस्तुत ग्रन्थ प्रमेयकमलमार्तण्ड है, [ प्रस्तुत भाग प्रमेयकमलमार्तण्ड का तृतीय भाग है । इसके पूर्व दो भाग प्रकाशित हो चुके हैं। तीनों भागों में लगभग चार-चार हजार श्लोक प्रमाण अंश आया है। पूर्व के दो भाग क्रमशः ६६८ व ६५२ पृष्ठों में छपे हैं तथा प्रस्तुत भाग ७०६ पृष्ठों में छपकर पूर्ण हुआ है । ] जो कि आज आचार्य तथा न्यायतीर्थ जैसी उच्च कक्षानों में पाठ्यग्रन्थ के रूप में स्वीकृत है एवं न्याय का अद्वितीय ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में न्याय ग्रन्थों के प्रायः सर्व सूक्ष्म विवेचन उपलब्ध हैं तथा मूलसूत्रों से सम्बद्ध सकल वादविवादों का समाधान ( परिहार ) इसमें है । विषय - परिचय स्वयं पूज्य विदुषी माताजीश्री ने आगे दिया है । प्रमेयकमलकार : ( ४ ) इस ग्रन्थ के अध्ययन से प्रमेयकमलमार्तण्डकार [ प्रभाचन्द्र ] का वैदुष्य एवं व्यक्तित्व अत्यन्त महनीय विदित होता है । आपने वैदिक तथा प्रवैदिक दर्शनों का गहन अध्ययन किया था । प्राप तार्किक तथा दार्शनिक दोनों थे । श्रापकी प्रतिपादन शैली और विचारधारा अपूर्वं थी । आपके गुरु का नाम पद्मनन्दि सैद्धान्तिक था । पद्मनन्दि सैद्धान्तिक प्रविद्धकर्ण और कौमारदेवव्रती थे अर्थात् पद्मनन्दिने कर्णवेध होने के पहले ही दीक्षा धारण की होगी और इसी कारण वे कौमारदेव व्रती कहे जाते थे । प्राप मूलसंघान्तर्गत नन्दिगरण के प्रभेदरूप देशीयगरण के गोल्लाचार्य के शिष्य थे । श्राचार्य प्रभाचन्द्र के सधर्मा सिद्धान्त शास्त्रों के पारगामी तथा चारित्र के सागर 'कुलभूषण मुनि' थे । प्रभाचन्द्र पद्मनन्दि से शिक्षा-दीक्षा लेकर उत्तर भारत में धारा नगरी में चले आये और यहाँ श्राचार्य माणिक्यनन्दि के सम्पर्क में आये । प्रभाचन्द्र ने अपने को माणिक्यनन्दि के पद में रत कहा है । इससे उनका साक्षात् शिष्यत्व प्रकट होता है; श्रतः सम्भव है कि प्रभाचन्द्र ने जैनन्याय का अभ्यास माणिक्यनन्दि से किया हो और उन्हीं के जीवनकाल में प्रमेय कमलमार्तण्ड की रचना की हो । श्रापने प्रमेयकमल मार्तण्ड धारानगरी में लिखा था । रचनाएँ : इनकी निम्नलिखित रचनाएँ मान्य हैं :१. प्रमेयक मलमार्तण्ड : परीक्षामुख व्याख्या २. न्यायकुमुदचन्द्र : लघीयस्त्रय व्याख्या ३. तत्त्वार्थं वृत्तिपदविवरण : सर्वार्थसिद्धि व्याख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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