Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3 Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi View full book textPage 6
________________ प्राक् कथन प्रस्तुत ग्रन्थ का स्रोत : न्यायशास्त्र के महापण्डित, सर्व ग्रन्थों के पारगामी एवं सद्गुणों के निवास भूत प्राचार्य माणिक्यनन्दि ने परीक्षामुखसूत्र नामक ग्रन्थ की रचना की । यह बहुत छोटा तथा सूत्ररूप ग्रन्थ है । इसमे छह परिच्छेद हैं । प्रथमादि परिच्छेदों में यथाक्रम १३, १२, १०१, ६, ३ एवं ७४ सूत्र हैं । इस तरह कुल २१२ सूत्र हैं । इसमें न्यायविषयक वर्णन है । परीक्षामुख ग्रन्थ न्याय शास्त्र का श्राद्य न्यायसूत्र रूप ग्रन्थ है | जैसे सिद्धान्त में संस्कृत भाषा में सूत्रबद्ध रचना तत्त्वार्थसूत्र सर्व प्रथम उमास्वामी ने की तथैव न्याय के क्षेत्र में परीक्षामुख प्रथम सूत्रग्रन्थ है । माणिक्यनन्दि नन्दिसंघ के प्रमुख प्राचार्य थे । धारानगरी इनकी निवास स्थली रही है । न्यायदीपिका में आपको 'भगवान्' कहा गया है ।' प्रमेयकमलमार्तण्ड में प्रभाचन्द्र ने इन्हें गुरु के रूप में उल्लिखित किया है तथा शिमोगा जिले के नगर ताल्लुके के शिलालेख नं० ६४ के एक पद्य में माणिक्यनन्दि को जिनराज लिखा है । प्रापके गुरु रामनंदि थे तथा माणिक्यनन्दि के शिष्य नयनन्दि थे । २ परीक्षामुख की टीकाएँ : उत्तरकाल में उक्त ग्रन्थ पर अनेक टीका व्याख्याएँ लिखी गईं । यथा (१) प्रभाचन्द्राचार्य का विशाल प्रमेयकमलमार्तण्ड (२) लघु अनन्तवीर्य की मध्यम परिमाण वाली प्रमेय रत्नमाला (३) भट्टारक चारुकीर्ति का प्रमेयरत्नमालालंकार ( ४ ) शान्तिवर्णी की प्रमेयकण्ठिका उत्तरवर्ती प्रायः समस्त जैन नैयायिकों ने इस ग्रन्थ ( परीक्षा मुख १. " तया चाह भगवान् माणिक्यनन्दि भट्टारक: " - न्यायदीपिका; अभिनवधर्म भूषण । २. सुदंसणचरिउ । प्रशस्तिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रेरणा ग्रहण की है। www.jainelibrary.orgPage Navigation
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