Book Title: Prakrit Hindi kosha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 10
________________ ( ७ ) शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में उनका योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। अहमदाबाद की एजुकेशन सोसायटी के आयोजक वे ही थे जिसकी स्थापना सन् १९३४ में हुई थी। नगर के भावी शैक्षणिक विकास को लक्ष्य में रखकर उन्होंने ७० लाख रुपये व्यय करके छ सौ एकड़ जमीन संपादित करवाई थी जिसके परिणामस्वरूप गुजरात विश्वविद्यालय का भव्य और विशाल संकुल अस्तित्व में आया। उनके परिवार की ओर से एल० डी० आर्टस् कॉलेज, एल० डी० इन्जिनियरिंग कॉलेज तथा एल० डी० प्राच्य विद्या मन्दिर को लाखों रुपये दान में दिये गये । विगत तीस-पैंतीस वर्षों में लालभाई दलपतभाई परिवार, ट्रस्ट की ओर से दो करोड़ पचहत्तर लाख का और अपने ही उद्योग गृहों की ओर से चार करोड़ का दान दिया गया। कस्तूरभाई को शिक्षा के प्रति कितनी रुचि थी इसका अनुमान उनके इन सब कार्यों से लगाया जा सकता है। यदि ऐसा न होता तो अटीरा, पी० आर० एल०, ला० द० भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, इन्डियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेन्ट, स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, नेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ डिजाइन और विक्रम साराभाई कम्युनिटी सेन्टर जैसी ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ अहमदाबाद में कैसे निर्मित हो सकती ? यह उद्योगपति कस्तूरभाई और युवा वैज्ञानिक डॉ० विक्रम साराभाई के संयुक्त स्वप्न की ही सिद्धि है। भारतीय संस्कृति के प्रति उनके प्रेम का परिचायक है विश्वविद्यालय-संकुल में स्थित जहाज के रमणीय आकार में निर्मित ला० द० भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर जो सन् १९५५ में बनकर तैयार हुआ था और उसका उद्घाटन प्रधान मन्त्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने किया था। मुनि श्री पुण्य विजय जी ने उस संस्था को १०,००० हस्तप्रतों एवं ७००० पुस्तकों का अत्यन्त मूल्यवान भेंट अर्पित की थी। आज इस संस्था के पास ३०,००० के प्रायः प्रकाशित ग्रन्थों का एवं ७०,००० के प्रायः पाण्डुलिपियों का संग्रह है। उसमें से दस हजार पाण्डुलिपियों की सूची केन्द्रीय सरकार की सहायता से एवं ७००० पाण्डुलिपियों की सूची गुजरात सरकार की सहायता से प्रकाशित हो चुकी है। अद्यावधि इस संस्था की ओर से १०० से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। ४८०० पाण्डुलिपियों की ट्रान्सपेरेन्सी एवं दो हजार मूल्यवान हस्तप्रतों की माईक्रोफिल्म भी कर ली गयी है साथ ही साथ १००० से अधिक पुराने सामायिकों के अंक भी संग्रहीत हैं। इस संस्था का मुख्य आकर्षण सांस्कृतिक संग्रहालय है। कस्तूरभाई एवं उनके परिवार के लोगों की ओर से भेंट में दी गयी बहुत सी पुरातात्त्विक वस्तुओं को इस संग्रहालय में संग्रहीत किया गया है । सुन्दर चित्र, कलाकृतियाँ, प्राचीन वस्त्र-आभूषण, सजावट की वस्तुएँ, हस्तप्रत एवं बारहवीं शती की चित्र युक्त हस्तप्रत आदि प्रायः चार सौ से अधिक वस्तुएँ इस संग्रहालय में प्रदर्शित हैं जो प्राचीन भारतीय जीवन और संस्कृति की मोहक झलक प्रस्तुत करती हैं। पुराने प्रेमाभाई हॉल का स्थापत्य कस्तूरभाई को कला की दृष्टि से खटक रहा था। उन्होंने लगभग छप्पन लाख रुपये खर्च करके उसका नव संस्करण करवाया जिसमें बत्तीस लाख का दान कस्तूरभाई परिवार एवं लालभाई ग्रुप के उद्योग समूह ने दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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