Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 5
________________ प्रा० जै० इ० तीसरा भाग स्मृति, महाभारत, रामायण और पुराणों में भी इस देश का जहाँ तहाँ कलिङ्ग नाम से ही उल्लेख हुआ है। भगवान महावीर स्वामी के शासन तक इसका नाम कलिंग कहा जाता था। श्री पन्नवणा सूत्र में जहाँ साढ़े पच्चीस आर्य क्षेत्रों का उल्लेख है उन में से एक का नाम कलिंग लिखा हुआ है । यथा "राजगिह मगह चंपा अंगा, तहतामलिति बंगाय । कंचणपुरं कलिंगा बणारसी चैव कासीय ।" उस समय कलिंग की राजधानी कांचनपुर थी। इस देश पर कई राजाओं का अधिकार रहा है । तथा कई महर्षियों ने इस पवित्र भूमि पर विहार किया है तेवीसवें तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथ प्रभु ने भी अपने चरणकमलों से इस प्रदेश को पावन किया था। तत्पश्चात् आप के शिष्य समुदाय का इस प्रान्त में विशेष विचरण हुआ था। महावीर प्रभु ने भी इस प्रान्त को पधार कर पवित्र किया था। इस प्रान्त में कुमारगिरि (उदयगिरि) तथा कुमारी (खण्डगिरि) नामक दो पहाड़ियाँ हैं जिन पर कई जैनमंदिर तथा श्रमण समाज के लिए कन्दराऐं हैं इस कारण से यह देश जैनियों का परम पवित्र तीर्थ रहा है। कलिंग, अंग, बंग और मगध में ये दोनों पहाड़ियाँ शत्रुजय गिरनार अवतार नाम से भी प्रसिद्ध थीं । अतएव इस तीर्थ पर दूर दूर से कई संघ यात्रा करने के हित आया करते थे । ब्राह्मणों ने अपने ग्रंथों में कलिंग वासियों को 'वेदधर्म विनाशक' बताया है।

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