Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 39
________________ प्रा० जै० इ० तीसरा भागः जा बिराजमान हुआ। उस समय खारवेल को आयु केवल ३७ वर्षकी थी। इसने राजगद्दी पर बैठ कर केवल १३ वर्ष पर्यन्त ही राज कार्य किया। अन्तिम अवस्था में उसने कुमार गिरि तीर्थ की यात्रा की, मुनिगणों के चरण कमलों का स्पर्श किया, पञ्चपरमेष्टि नमस्कार मंत्र का अाराधन किया तथा पूर्ण निवृति भावना से देहत्याग किया। महाराजा खारवेल के पश्चात् कलिङ्गाधिपति उसका पुत्र विक्रमराय हुआ। यह भी अपने पिताकी तरह एक वीर व्यक्ति था । अपने पिता द्वारा प्रारम्भ किये हुए अनेक अनेक कार्यो को इसने अपने हाथ में लिया और उन्हें परिश्रम पूर्वक पूरा किया। विक्रमराय, धीर, वीर और गम्भीर था। इस की प्रकृति शान्त थी इस कारण राज्यभर में किसी भी प्रकार का कलह और क्रांति नहीं होती थी। इस प्रकार इसने योग्यता पूर्वक राज्य करते हुए जैन धर्म का प्रचार भी किया था। विक्रमराय के पश्चात् गद्दी का अधिकारी उसका पुत्र बहुदराय हुआ। इसने भी अपने पिता और पितामह की भांति सम्यक् प्रकार से शासन किया तथा जैनधर्म के प्रचार में अपने अमूल्य समय शक्ति और द्रव्य को लगाया । इस के आगे का इतिहास दूसरे प्रकरणों में लिखा जायगा। विक्रम से दो सदियों पूर्व के शिलालेख तथा विक्रम की दूसरी सदी के लिखित जैन इतिहास में समय के अतिरिक्त बहुतसी दूसरी बातें मिलती हैं जो इस प्रकार हैं :

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