Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 38
________________ कलिङ्ग देश का इतिहास ३५' जाना चाहिये । ये बातें सब सभासदों को नीकी लगी इस लिये बिना आक्षेप या विरोध के सबने इन्हें मानली। इस के पश्चात् सभा निर्विघ्नतया विसर्जित हुई । इस सभा के प्रस्ताव केवल कागजी घोड़े ही नहीं थे वरन् वे शीघ्र कार्यरूप में परिणत किये गये । उसी शान्त तथा पवित्र स्थल में मुनिराजोंने एकत्रित हा भूले हुए शास्त्रों को फिरसे याद किया तथा ताड़पत्रों, भोजपत्रों आदि पत्तों तथा वृक्षों के वलकल पर उन्हें लिखना आरम्भ किया। कई मुनिगण प्रचार के हित विदेशों में भी भेजे गये थे। खारवेल नप ने जैन धर्म के प्रचार में पूरा प्रयत्न किया। जिन मन्दिरों से मेदिनि मंडित हो गई तथा पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया गया। इस के अतिरिक्त जैनागम लिखाने में भी प्रचुर द्रव्य व्यय किया गया। जैन धर्म का प्रचार भारत में ही नहीं किन्तु भारत के बाहर भी चारों दिशाओं में करवाया गया। ___ जैन धर्मावलम्बियों की हर प्रकार से सहायता की जाती थी। एक वार आचार्यश्री सुस्थिसूरी खारवेल नरेश को सम्प्रति नरेश का वर्णन सुना रहे थे तब राजा के हृदय में महाराज संप्रति के प्रति बहुत धर्म स्नेह उत्पन्न हुआ । आपकी उत्कट इच्छा हुई कि मैं भी सम्प्रति नरेश की नाई विदेशों में तथा अनार्य देशों में सुभटों को भेज कर मुनिविहार के योग्य क्षेत्र बनवा कर जैन धर्म का विशेष प्रचार करवाऊँ। पर उसकी अभिलाषाएँ मन की मन में रह गई । होनहार कुछ और ही बदा था । धर्मप्रेमी खारवेल इस संसार को त्याग कर सुर सुन्दरियों के बीच

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