Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 36
________________ कलिङ्ग देश का इतिहास खारवेल नरेश ने इस प्रकार साहित्य की दुःखद दशा देखकर पूर्ण दूरदर्शिता से काम लिया । विस्मृति के गहरे गर्तमें गए हुए आगमों का अनुसंधान करना किसी एक व्यक्ति के लिये अशक्य था इसी हेतु खारवेल ने एक विराट सम्मेलन करने का नियन्त्रण किया। इस सभा में प्रतिनिधियों को बुलाने के लिये संदेश दूर और समीप के सब प्रान्तों और देशों में भेजा गया। लोगोंने भी इस सभा के कार्य को सफल बनाने के हेतु पूर्ण सहयोग दिया। - इस सभा में जिनकल्पी की तुलना करनेवाले आचार्य बलिस्सह बोधलिङ्ग देवाचार्य धर्मसेनाचार्य आदि २०० मुनि एवम् स्थिरकल्पी प्राचार्य सुस्थिसूरी सुप्रतिबद्धसूरी उमास्वाती आचार्य श्यामाचार्य आदि ३०० मुनि और पइणि आदि ७०० आर्यिकाऐं, कई राजा, महाराजा, सेठ तथा साहुकार आदि अनेक लोग विपुल संख्या में उपस्थि थे । इस प्रकार का जमघट होने के कई कारण थे। प्रथय तो कुमार गिरि की तीर्थ यात्रा, द्वितीय मुनिराजों के दर्शन, तृतीय स्वधर्मियों का समागम तथा चतुर्थ जिन शासन की सेवा, इस प्रकार के एक पंथ दो नहीं किन्तु चार काम सिद्ध न करनेवाला कौन अभागा होगा? स्वागत समिति की ओरसे मन खोल कर स्वागत किया गया । खारवेल नरेशने अतिथियों की सेवा करने में किसी भी प्रकारकी त्रुटि नहीं रक्खी। इस सभा के सभापति आचार्य श्री सुस्थि सूरी चुने गये। आप इस पद के सर्वथा योग्य थे। निश्चित समय पर सभा का कार्य प्रारम्भ हुआ। सब से पहले नियमानुसार माला

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