Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ २० प्रा० जै० इ० तीसरा भोग शिलालेख का भाषानुवाद | ( श्रीमान् पं० सुखलालजी का 'गुजराती भाषानुवाद' से ) (१) हितों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, ऐर ( एैल ) महाराजा महामेघवाहन ( मरेन्द्र ) चेदिराजवंशवर्धन, प्रशस्त, शुभ लक्षण युक्त, चतुरन्त व्यापि गुण युक्त कलिङ्गाधिपति श्री खारवेलने ( २ ) पन्द्रह वर्ष पर्यन्त श्री कडार ( गौर वर्ण युक्त ) शारीरिक स्वरूपवालेने बाल्यावस्था की क्रीडाऍं की। इसके पीछे लेख्य (सरकारी फरियादनामा आदि ) रूप ( टंकशाल) गणित ( राज्य की आय व्यय तथा हिसाब ) व्यवहार ( नियमोपनियम ) और विधि ( धर्मशास्त्र आदि ) विषयों में विशारद हो सर्व विद्यावदात (सर्व विद्याओं में प्रबुद्ध ) ऐसे ( उन्होंने ) नौ वर्ष पर्यन्त युवराज पद पर रह कर शासन का कार्य किया । उस समय पूर्ण चौबीस वर्ष की आयु में जो कि बालवयसे वर्द्धमान और जो अभिविजय में वेन ( राज ) है ऐसे वह तीसरे 1 (३) पुरुष युग में ( तीसरी पुश्त में ) कलिंग के राज्यवंश में राज्याभिषेक पाये । अभिषेक होने के पश्चात् प्रथम वर्ष में प्रबल वायु उपद्रव से टूटे हुए दरवाज़े वाले किले का जीर्णोद्धार कराया । राजधानी कलिंग नगर में ऋषि खिबीर के तालाब और किनारे बँधवा । सब बगीचों की मरम्मरत

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44