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प्रा०
जै० इ० तीसरा भोग
शिलालेख का भाषानुवाद |
( श्रीमान् पं० सुखलालजी का 'गुजराती भाषानुवाद' से ) (१) हितों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, ऐर ( एैल ) महाराजा महामेघवाहन ( मरेन्द्र ) चेदिराजवंशवर्धन, प्रशस्त, शुभ लक्षण युक्त, चतुरन्त व्यापि गुण युक्त कलिङ्गाधिपति श्री खारवेलने
( २ ) पन्द्रह वर्ष पर्यन्त श्री कडार ( गौर वर्ण युक्त ) शारीरिक स्वरूपवालेने बाल्यावस्था की क्रीडाऍं की। इसके पीछे लेख्य (सरकारी फरियादनामा आदि ) रूप ( टंकशाल) गणित ( राज्य की आय व्यय तथा हिसाब ) व्यवहार ( नियमोपनियम ) और विधि ( धर्मशास्त्र आदि ) विषयों में विशारद हो सर्व विद्यावदात (सर्व विद्याओं में प्रबुद्ध ) ऐसे ( उन्होंने ) नौ वर्ष पर्यन्त युवराज पद पर रह कर शासन का कार्य किया । उस समय पूर्ण चौबीस वर्ष की आयु में जो कि बालवयसे वर्द्धमान और जो अभिविजय में वेन ( राज ) है ऐसे वह तीसरे
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(३) पुरुष युग में ( तीसरी पुश्त में ) कलिंग के राज्यवंश में राज्याभिषेक पाये । अभिषेक होने के पश्चात् प्रथम वर्ष में प्रबल वायु उपद्रव से टूटे हुए दरवाज़े वाले किले का जीर्णोद्धार कराया । राजधानी कलिंग नगर में ऋषि खिबीर के तालाब और किनारे बँधवा । सब बगीचों की मरम्मरत