Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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कलिङ्ग देश का इतिहास
( ४ ) करवाई । पैंतीस लाख प्रकृति ( प्रजा ) का रञ्जन किया। दूसरे वर्ष में सातंकरिण ( सातकर्णि ) की कश्चित् भी परवाह न कर के पश्चिम दिशा में चढ़ाई करने को घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सहित बड़ी सेना भेजी । कन्हवेनों (कृष्णवेणा ) नदी पर पहुँची हुई सेना से मुसिकभूषिका नगर को त्रास पहुँचाया। और तीसरे वर्ष में गंधर्व वेद के पंडित ऐसे ( उन्होंने ) दं ( डफ १ ) नृत्य, गीत, वादित्र के संदर्शन ( तमाशे) आदि से उत्सव समाज ( नाटक, कुश्ती आदि) करवा कर नगर को खेलाया और चौथे वर्ष में विद्याधराधिवासे को केगिस को कलिङ्ग के पूर्ववर्ती राजाओं ने बनवाया था और जो पहिले कभी भी पड़ा नहीं था । अर्हत पूर्व का अर्थ नया चढ़ा कर यह भी होता है जिस के मुकुट व्यर्थ हो गये हैं । जिन के कवच बख्तर आदि काट कर दो टुकड़े कर दिये गये हैं, जिन के छत्र काट कर उड़ा दिये गये हैं
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(६) और जिन के शृङ्गार ( राजकीय चिह्न, सोने चांदी के लोटे झारी) फेंक दिये गये हैं, जिन के रत्न और स्वापतेय (धन) छीन लिया गया है ऐसे सब राष्ट्रीय भोजकों को अपने चरणों में झुकाया, अब पांचवे वर्ष में नन्दराज्य के एक
और तीसरे वर्ष (संवत् ) में खुदी हुई नहर को तनसुलिय के रस्ते राजधानी के अन्दर ले आए। अभिषेक से छटवें वर्ष राजसूय यज्ञ के उजवते हुए । महसूल के सब रुपये