Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 8
________________ कलिङ्ग देश का इतिहास बात नहीं है कि जैनी अपने शत्रु से बदला लेने का विचार तक नहीं करते थे । यदि जैनियों की नीति कुटिल होती तो क्या वे चन्द्रगुप्त मौर्य या सम्प्रति नरेश के राज्य में विधम्मियों को सताने से चूकते, कदापि नहीं । पर नहीं, जैनी किसी को सताना तो दूर रहा, दूसरे जीव के प्रति कभी असद् विचार तक नहीं करते । जैन शास्त्रकारों का यह खास मन्तव्य है कि अपने प्रकाश द्वारा दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करना तथा सदुपदेश द्वारा भूले भटकों तथा अटकों को राह बताना चाहिए । सबके प्रति मैत्रीभाव रखना यह जैनियों का साधारण आचार है । जो थोड़ा भी जैनधर्म से परिचित होगा उपरोक्त बात का अवश्यमेव समर्थन करेगा । परन्तु विधम्मियों ने अपनी सत्ता के मद में जैनियों पर ऐसे ऐसे कष्टप्रद अत्याचार किये कि जिनका वर्णन याद आते ही रोमांच खड़े हो जाते हैं तथा हृदय थर थर काँपने लगता है। जिस मात्रा में जैनियों में दया का संचार था विधर्मी उसी मात्रा में निर्दयता का बर्ताव कर जैनियों को इस दया के लिए चिढ़ाते थे। पर जैनी इस भयावनी अवस्था में भी अपने न्यायपथ से तनिक भी विचलित नहीं हुए । यही कारण है कि आज तक जैनी अपने पैरों पर खड़े हुए हैं और न्याय पथ पर पूर्णरूप से आरूढ़ हैं। धर्म का प्रेम जैनियों की रग-रग में रमा हुआ है जैनों के स्याद्वाद सिद्धान्तों का आज भी सारा संसार लोहा मानता है । स्याद्वाद के प्रचंड शस्त्र के सामने मिथ्यात्वियों का कुतर्क टिक

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