Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 7
________________ प्रा० जै० इ० तीसरा भाग mmmmmmmmm पूर्ण जाहोजलाली थी। इतना ही नहीं विक्रम की सोलहवीं शताब्दि में सूर्यवंशी महाराजा प्रतापरुद्र वहाँ का जैनी राजा था । उस समय तक तो जैन धर्म का अभ्युदय कलिंग देश में हो रहा था । पर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सर्वथा जैनधर्म एकाएक कलिंग में से कैसे चला गया। इस पर विद्वानों का मत है कि जैनों पर किसी विधर्मी राजा की निर्दयता से ऐसे अत्याचार हुए कि उन्हें कलिंग देश का परित्यागन करना पड़ा । यदि इस प्रकार की कोई आपत्ति नहीं आती तो कदापि जैनी इस देश को नहीं छोड़ते। ___केवल इसी देश में अत्याचार हुआ हो ऐसी बात नहीं है, विक्रम की आठवीं नौवीं शताब्दि में महाराष्ट्र में भी जैनों को इसी प्रकार की मुसीबत से सामना करना पड़ा क्योंकि विधर्मी नरेशों से जैनियों की उन्नति देखी नहीं जाती थी। वे तो जैनियों को दुःख पहुँचाना अपना धर्म समझते थे। कई जैन साधु शूली पर भी लटका दिये गये । वे जीते जी कोल्हू में पेरे गये । उन्हें जमीन में आधा गाढ़ कर काग और कुत्तों से नुचवाया गया इसके कई प्रमाण भी उपस्थित हैं । “हालस्य महात्म्य" नामक ग्रन्थ में, जो तामिली भाषा में है, उसके ६८ वें प्रकरण में इन अत्याचारों का रोमांचकारी विस्तृत वर्णन मौजूद है किन्तु जैनियों ने अपने राजत्व में किसी विधर्मी को नहीं सताया था यही जैनियों की विशेषता है । यह कम गौरव की

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