Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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जै० इ० तीसरा भाग
लोग यह आक्षेप किया करते हैं कि जिस प्रकार बौद्ध और वेदान्त मत राजाओं से सहायता प्राप्त करता था तथा अपनाया जाता था उसी प्रकार जैन धर्म किसी राजा की सहायता नहीं पाता था न यह अपनाया जाता था या जैन धर्म सारे राष्ट्र का धर्म नहीं था, उनको इस शिलालेख से पूरा उत्तर प्रत्यक्षरूप से मिल जाता है और उन के बोलने का अवसर नहीं प्राप्त हो सकता ।
भगवान महावीर के अहिंसा धर्म के प्रचारकों में शिलालेखक सब से प्रथम खारवेल का ही नामउपस्थित करते हैं । महाराजा खारवेल कट्टर जैनी था । उसने जैन धर्म का प्रचुरता से प्रचार किया । इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि आप चैत्रवंशी थे । आपके पूर्वजों को महामेघवहान की उपाधि मिली हुई थी। आपके पिता का नाम बुद्धराज तथा पितामह का नाम खेमराज था । महाराजा खारवेल का जन्म २६७ ई० पूर्व सन् में हुआ । पंद्रह वर्ष तक आपने बालवय आनंदपूर्वक बिताते हुए आवश्यक विद्याध्ययन भी कर लिया तथा नौ वर्ष तक युवराज रह कर राज्य का प्रबंध आपने किया था । इस प्रकार २४ वर्षकी आयु में आपका राज्याभिषेक हुआ । १३ वर्ष पर्यन्त आपने कलिंगाधिपति रह कर सुचारु रूप से शासन किया । अन्त में अपने राज्य कालमें दक्षिण से लेकर उत्तर लों राज्य का विस्तार कर आपने सम्राट् की उपाधि भी प्राप्त की थी आपने अपना जीवन धार्मिक कार्य करते हुए बिताया । अन्त में आपने समाधि मरण द्वारा उच्च गति प्राप्त की । ऐसा शिलालेख से मालूम होता है ।