Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः सामियनेमिकुमारपयपंकयलंबिउ । धरधूल वि जिण धन्न मन पूरइ वंछिउ। जो भव कोडाकोड्डि । अन्नु सोवनु घणु दाणु जउ दिजए । सेवउ जडकम्मघणगंठि जउ तिजए । तउ उजिंतसिहरु पाविजए ॥७॥ जम्मणु जोव जीविय तसु तहिं कयत्थू । जे नर उर्जितसिहरु पेकइ वरतित्थू । आसि गुरजरधरय जेण अमरेसरु । सिरिजयसिंघदेउ पवरु पुहवीसरु । हणवि सोरठु तिणि राउ षंगारउ । ठविउ साजणु दंडाहिवं सारउ ॥ ८॥ अहिणवु नेमिजिणिंद तिणि भवणु कराविउ । निम्मलु चंदरु बिंबे नियनाउं लिहाविउ । थोरविकंभवायंभरमाउलं। ललियपुत्तलियकलसकुलसंकुलं । मंडपु दंडघणु तुंगतरतोरणं । धवलिय वज्झिरुणझणिरिकिंकणिघणं । इकारसयसहीउ पंचासीय वच्छरि । नेमिभुयणु उहरिउ साजणि नरसेहरि ॥९॥ मालवमंडलगुहमुहमंडणु। भावडसाहु दालिधुखंडणु। आमलसारसोवन्नु तिणि कारिउ । किरि गयणंगण सूरु अवयारिउ । अवरसिहरवरकलस झलहलइ मणोहर । नेमिभुयणि तिणि दिठुइ दुह गलइ निरंतर ॥ १०॥ (द्वितीयं कडवम् ) दिसि उत्तर कसमीरदेसु नेमिहि उम्माहिय । अजिउ रतन दुइ बंध गरुय संघाहिव आविय ॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 172