Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

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Page 11
________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः तहि पुरि सोहिउ पासजिणु आसारायविहारु । निम्मिउ नामिहि निजजणणि कुमरसरोवरु फारु ॥ १० ॥ तहि नयरह पूरवदिसिहि उग्रसेणगढदुग्गु । आदिजिणेसरपमुहजिणमंदिरि भरिउ समग्गु ॥ ११ ॥ बाहिरिगढ दाहिणदिसिहि चउरियवेहिविसालु। लाडुकलहहियओरडीय तडि पसुठाइकरालु ॥ १२ ॥ तहि नयरह उत्तरदिसिहि सालथंभसंभार । मंडण महिमंडल सयल मंडप दसह उसार ॥ १३ ॥ जोइउ जोइउ भवियण पेमिं गिरिहि दुयारि । दामोदरु हरि पंचमउ सुवन्नरेहनइपारि ॥ १४ ॥ अगुण अंजण अंबिलीय अंबाडय अंकुल्ल । उंबरु अंबरु आमलीय अगरु असोय अहल्ल ॥ १५ ॥ करवर करपट करुणतर करवंदी करवीर । कुडा कडाह कयंब कड करब कलि कंपीर ॥ १६ ॥ वेयलु वंजलु बउल वडो वेडस वरण विडंग । वासंती वीरिणि विरह वंसियालि वण वंग ॥ १७॥ सींसमि सिंबलि सिरसमि सिंधुवारि सिरखंड। सरल सार साहार सय सागु सिगु सिणदंड ॥ १८ ॥ पल्लवफुल्लफलुल्लसिय रेहइ ताहि वणराइ। तहि उजिलतलि धम्मियह उल्लटु अंगि न माइ ॥ १९ ॥ बोलावी संघहतणीय कालमेघंतरपंथि । मेल्हविय तहिं दिढ घणीय वस्तपाल वरमंति ॥२०॥ (प्रथमं कडवम् ) दुविहि गुज्जरदेसे रिउरायविहंडणु। कुमरपालु भूपाल जिणसासणमंडणु । तेण संठाविओ सुरठदंडाहिवो। अंबओ सिरे सिरिमालकुलसंभवो । पाज सुविसाल तिणि नठिय। . अंतरे धवल पुणु परव भराविय ॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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